स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (1895)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)

द्वारा कुमारी डचर,
सहस्रद्वीपोद्यान, न्यूयार्क,
१८९५

प्रिय बहन,

भारत से आयी डाक के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। तुम्हारे प्रति अपना आभार मैं शब्दों में नही प्रकट कर सकता। तुमने अमरत्व पर मैक्स मूलर के निबन्ध में पढ़ा होगा, जो मैने मदर चर्च को भेजा था – वे सोचते हैं कि हम इस जीवन में जिन्हें प्यार करते हैं, उन्हें हमने अतीत में भी प्यार किया होगा। इसीलिए ऐसा लगता है कि अतीत के जीवन में मैं ‘पावन परिवार’ का रहा होऊँगा।

मैं भारत से कुछ पुस्तकों की आशा कर रहा हूँ। आशा है, वे पहुँच गयी होंगी। अगर आ गयी हों, तो कृपया तुम उन्हें यहाँ भेज दो। अगर कुछ डाक-खर्च देना हो, तो मैं सूचना मिलते ही भेज दूँगा। तुमने उस कम्बल पर चुंगी के सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा। खेतड़ी से दरी,शाल,जरीदार कपड़े और कुछ छोटी-मोटी चीजों का पुनःएक बड़ा पैकेट आनेवाला है। मैने उन्हें लिख दिया है कि अगर संभव हो, तो बम्बई में ही अमेरिकन वाणिज्य-दूत के द्वारा कर चुकाने की व्यवस्था कर दें। अगर नहीं, तो मुझे यहाँ चुकाना पड़ेगा। कुछ महीनों में ही वे वस्तुएँ आ सकेंगी – यह मैं नहीं कह सकता हूँ। मैं पुस्तकों के प्रति उत्सुक हूँ। कृपया पहुँचते ही उन्हें यहाँ भेज दो।

मदर चर्च और फादर पोप और सभी बहनों को मेरा प्यार। मैं यहाँ बहुत आनन्द से हूँ। बहुत कम खाता हूँ और पर्याप्त सोचता हूँ, अध्ययन करता हूँ और बातें करता हूँ। मेरी आत्मा में आश्चर्यजनक शांति आती जा रही है। प्रतिदिन मुझे ऐसा अनुभव होता है, जैसे मेरा कुछ कर्तव्य नहीं है; सदा चिर विश्राम और शांति में अपने को अनुभव करता हूँ। हम सबके पीछे ईश्वर ही है, जो क्रियाशील है। हम लोग मात्र यंत्र हैं। धन्य है ‘उसका’ नाम!

वर्तमान अवस्था में काम, अर्थ और यश – ये तीन बन्धन मानो मुझसे दूर हो गये है और पुनः यहाँ भी मैं वैसा ही अनुभव कर रहा हूँ, जैसा कभी भारतवर्ष में मैने किया था। ‘मुझसे सभी भेद-भाव दूर हो गये हैं। अच्छा और बुरा, भ्रम और अज्ञानता सब विलीन हो गये हैं। मैं गुणातीत मार्ग पर चल रहा हूँ।’ किस नियम का पालन करूँ और किसकी अवज्ञा? उस ऊँचाई से विश्व मुझे मिट्टी का लोंदा लगता है। हरिॐतत्सत। ईश्वर का अस्तित्व है; दूसरे का नहीं। मैं तुझमें और तू मुझमें। प्रभु, तू ही मेरे चिर शरण हो! शांति, शांति, शांति! सदा प्यार और शुभकामनाओं के साथ,

तुम्हारा भाई,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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