स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (2 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)
१२५१ पाइन स्ट्रीट,
सैन फ़्रेंसिस्को,
२ मार्च, १९००
प्रिय, मेरी,
तुम्हारी बड़ी कृपा है जो तुमने शिकागो आने के लिए मुझे आमंत्रित किया। काश कि मैं वहाँ इस क्षण ही उपस्थित हो सकता! किन्तु मैं धनोपार्जन में व्यस्त हूँ, बस दुःख केवल इतना है कि मैं अधिक नहीं कर पाता। तुम जानती हो मुझे घर वापस लौटने के लिए किसी भी प्रकार से पर्याप्त पैसा पैदा करना है। यहाँ एक नया कार्यक्षेत्र मुझे मिला है, जहाँ सैकड़ों लोग, जो मेरी पुस्तकें पढ़कर पहले ही से प्रस्तुत हैं, मेरी बातें सुनने को उत्सुक हैं।
यह सही है कि अर्थोपार्जन करना कठिन और मन्द कार्य है। यदि मैं दो-चार सौ भी बना लूँ, तो मुझे बेहद खुशी होगी।इस समय तक तुम्हें मेरा पिछला पत्र मिल चुका होगा। मुझे आशा है कि महीने-छः हफ्ते में मैं पूरब की ओर जा रहा हूँ।
तुम सब कैसी हो? ‘मदर’ से मेरा हार्दिक स्नेह कहना। काश, उनकी जैसी शक्ति मुझमें भी होती! वे एक सच्ची ईसाइन हैं। मेरा स्वास्थ्य काफी अच्छा है, पर वह पुरानी ताकत अभी नहीं आ पायी है। आशा है कि किसी दिन आ जायगी, पर छोटी छोटी चीजों के लिए भी कितना कठिन श्रम करना पड़ता है! मेरी बड़ी इच्छा है कि कम से कम कुछ दिनों के लिए ही मुझे आराम-चैन मिल पाता। मुझे पूरा विश्वास कि शिकागो में अपनी बहनों के पास मुझे यह मिल सकता है। खैर, जैसी कि मेरी कहने की आदत है, जगन्माता सब कुछ जानती हैं। वे भली भाँति जानती हैं। पिछले दो वर्ष विशेषतया बुरे रहे हैं। मैं एक मानसिक नरक की स्थिति में रह रहा था। अब वह कुछ कुछ दूर हो चला है और मैं आशा करता हूँ कि यह सब अच्छे दिनों और अच्छी स्थिति के लिए ही हुआ है। तुमको और बहनों को तथा ‘मदर’ को बहुत आशीर्वाद॥ मेरी, तुम सदैव मेरे कर्कश एवं संघर्षपूर्ण जीवन के मधुरतम स्वर-ध्वनियों के समान रही हो। फिर यह तुम्हारे अच्छे महान् कर्मों का फल था कि बिना दमनशील वातावरण के तुम्हें जीवन आरम्भ करने का मौका मिला। मैं तो जीवन में एक क्षण का भी विश्राम नहीं जानता। मानसिक रूप से जीवन मेरे लिए सदा एक दबाव की तरह रहा है। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करें।
तुम्हारा चिरस्नेही भाई,
विवेकानन्द