स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (22 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)
१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
२२ मार्च, १९००
प्रिय मेरी,
तुम्हारे पत्र के लिए अनेक धन्यवाद। तुम्हारा कहना सच है कि भारत वासियों के विषय में सोचने के अलावा भी मुझे सोचने को बहुत कुछ है, पर अपने गुरूदेव के कार्य को सम्पादित करने का जो सबको समाहित कर लेनेवाला मेरा जीवन-उद्देश्य है, उसके सामने इन सबको गौण हो जाना पड़ता है। मैं चाहता हूँ कि यह त्याग सुखकर हो सके। पर ऐसा नहीं है, और स्वाभाविक है कि इससे मनुष्य कभी कभी कटु हो जाता है, क्योंकि तुम यह जान लो मेरी कि मैं अभी भी मनुष्य ही हूँ और अपने मनुष्य स्वभाव को पूरी तरह विस्मृत नहीं कर सका हूँ। मुझे आशा है कि कभी ऐसा कर सकूँगा। मेरे लिए प्रार्थना करो।
अवश्य ही मेरे प्रति या किसी भी वस्तु के प्रति कुमारी मैक्लिऑड अथवा कुमारी नोबुल की क्या धारणा है, इसके लिए मैं उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। या ऐसा हो सकता है? आलोचना से तो खिन्न होते तुमने मुझे कभी नहीं देखा होगा।
मुझे ख़ुशी है कि एक लम्बे समय के लिए तुम यूरोप जा रही हो। ख़ूब लम्बा चक्कर लगाओ, तुम काफी समय से घर की कबूतरी बनी रही हो।
जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं तो चिरन्तन रूप से भ्रमण करते करते थक गया हूँ। इसीलिए मैं घर वापस जाना और आराम करना चाहता हूँ। मैं अब और काम करना नहीं चाहता। मेरा मामला किसी विद्वान के अवकाश प्राप्त करने जैसा ही असम्भव है। वह मुझे कभी नहीं मिलता। मैं कामना करता हूँ कि वह मुझे मिले, विशेषकर अब जब कि मैं टूट चुका और काम करते करते थक चुका हूँ। जब भी मुझे श्रीमती सेवियर का उनके हिमालय स्थित आवास से पत्र मिलता है, मेरी हिमालय को उड़ जाने की इच्छा होने लगती है। मैं सचमुच इस मंचकार्य और शाश्वत घुमक्कड़ी तथा नये लोगों से मिलने एवं व्याख्यानबाजी से तंग आ चुका हूँ।
शिकागो में कक्षा चलाने की झंझट में पड़ने की तुम्हें जरूरत नहीं। मैं फ़्रिस्को में पैसा पैदा कर रहा हूँ और शीघ्र ही घर वापस जाने के लिए काफी पैदा कर लूँगा।
तुम्हारा और बहनों का क्या हाल है? मैं करीब अप्रैल के प्रारम्भ में शिकागो आने की आशा करता हूँ।
तुम्हारा,
विवेकानन्द