स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (27 दिसम्बर, 1899)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)

द्वारा श्रीमती ब्लाजेट,
९२१ पश्चिम, २१वीं स्ट्रीट,
लॉस एंजिलिस,
२७ दिसम्बर, १८९९

प्रिय मेरी,

क्रिसमस और नव वर्ष तुम्हारे लिए सुख तथा उल्लासपूर्ण हों और इन्हीं जैसा तुम्हारा जन्मदिन बार-बार आवे। ये सब शुभकामनाएँ, प्रार्थनाएँ तथा बधाइयाँ तुम्हें एक साँस में भेज रहा हूँ। तुम जानकर प्रसन्न होगी कि मैं स्वस्थ हो गया हूँ। डॉक्टर कहते हैं कि यह केवल बदहजमी थी, हृदय या गुर्दे की खराबी नहीं; अब कुछ नहीं है। और अब मैं दिन में तीन मील तक घूमता हूँ – वह भी डट कर भोजन कर लेने के बाद!

जरा सोचो तो, जिस व्यक्ति ने मेरा इलाज किया वह मेरे धूम्रपान करने पर बल देता है! अतः मैं ठाठ से धूम्रपान कर रहा हूँ और इससे मुझे आराम ही है। स्पष्ट रूप से कहूँ तो यह घबराहट आदि सब अजीर्ण के कारण ही थी और कुछ नहीं।

… मैं काम भी कर रहा हूँ; पर कठिन परिश्रम नहीं; लेकिन फिर मुझे इसकी परवाह भी नहीं, इस बार मैं पैसा पैदा करना चाहता हूँ। यह सब मार्गट से कह देना, विशेषकर धूम्रपानवाली बात। तुम जानती हो मेरा इलाज कौन कर रहा है? कोई डॉक्टर नहीं, कोई ‘क्रिश्चियन साइंस हीलर’ (Christian science healer) नहीं, बल्कि एक महिला ‘मैगनेटिक हीलर’ (magnetic healer), जो जितनी बार मेरा इलाज करती है, उतनी बार मुझे लगता है कि मेरी चमड़ी छिल गयी। वे चमत्कार करती हैं – केवल घर्षण द्वारा आपरेशन करती हैं, यहाँ तक आन्तरिक आपरेशन भी, जैसा कि उनके मरीज मुझे बताते हैं!

काफी रात हो गई है। मुझे मार्गट, हैरियट, ईसाबेल तथा ‘मदर चर्च’ को अलग अलग पत्र लिखना छोड़ना पड़ेगा। आधा काम तो इच्छा से ही पूरा हो जाता है। वे सब जानती हैं कि मैं उन्हें कितने उत्कट रूप से चाहता हूँ। अतः इस समय तुम मेरे लिए माध्यम बन जाओ उन तक नव वर्ष का मेरा संदेश पहुँचा दो।

यहाँ जाड़ा बिल्कुल उत्तर भारत जैसा है, अलबत्ता कभी कभी दिन थोड़े गर्म हो जाते हैं। गुलाब भी यहाँ हैं और सुन्दर ताड़ भी। खेतों में जौ की फसल खड़ी है; यहाँ जिस काटेज में मैं रहता हूँ, उसके चारों ओर गुलाब और दूसरे कई फूल लगे हैं। मेरी मेजबान श्रीमती ब्लाजेट शिकागो की महिला हैं – मोटी, बूढ़ी और अत्यन्त हाजिरजवाब! शिकागो में उन्होंने मेरा व्याख्यान सुना था और मेरे प्रति मातृवत् व्यवहार करती हैं।

मुझे अत्यन्त खेद है कि अंग्रेजों ने दक्षिणी अफ्रीका में एक तातार को पकड़ लिया। तम्बू के बाहर ड्यूटी पर तैनात सैनिक ने चिल्लाकर कहा कि उसने एक तातार को पकड़ लिया है। “उसे अन्दर ले आओ” – तम्बू के भीतर से हुक्म आया। “वह नहीं आयेगा” – संतरी ने उत्तर दिया। “तब तुम खुद चले आओ”, दुबारा हुक्म सुनाई दिया। “वह मुझे भी आने नहीं देता।” इसीसे मुहावरा बना ‘तातार पकड़ना’। तुम कोई न पकड़ना।

इस समय मैं प्रसन्न हूँ और आशा करता हूँ कि शेष जीवन ऐसा ही रहूँगा। इस समय तो मैं ‘क्रिश्चियन साइंस’ की मनःस्थिति में हूँ – कुछ भी बुरा नहीं है, और ‘प्रेम ही सब चालों में तुर्पचाल।’

अगर मैं प्रचुर धन अर्जित कर सकता, तो मुझे बड़ी खुशी होती। कुछ तो कर भी रहा हूँ। मार्गट से कहो कि मैं काफी रुपया पैदा करने जा रहा हूँ और जापान, हॉनॉलूलू, चीन और जावा होते हुए घर वापस जा रहा हूँ। जल्दी रुपया कमाने के लिए यह एक उत्तम स्थान है, सैन फ़्रांसिस्को इससे भी अच्छा है। क्या उसने कुछ रुपया कमाया?

तुम्हें करोड़पति नहीं मिला? क्यों नहीं तुम आधे या चौथाई करोड़ से शुरू करतीं? कुछ भी न होने से कुछ होना अच्छा है। हमें तो रुपया चाहिए, फिर वह मिशिगन झील में जाय, हमें कोई आपत्ति नहीं। अभी उस दिन यहाँ हल्का भूकम्प आया था। मुझे आशा है यह शिकागो भी गया है और वहाँ ईसाबेल के घर-घरौंदे उलट-पुलट कर रख दिये हैं। काफी देर हो रही है। मुझे जँभाई आ रही है, इसलिए यहीं छोड़ता हूँ। विदा। आशीर्वाद तथा स्नेह सहित –

विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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