स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित (6 जनवरी, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)

न्यूयार्क,
६ जनवरी, १८९६

प्रिय बहन,

नये वर्ष के तुम्हारे अभिनन्दन के लिए तुम्हें अनेक धन्यवाद। यह जानकर प्रसन्न हूँ कि तुमने अपने छः सप्ताह श्रीमान् के साथ आनन्दपूर्वक बिताये, यद्यपि उनमें सिर्फ़ गोल्फ ही खेलना हुआ होगा। मैं इंग्लैण्ड में असली कार्यों में लगा था। अंग्रेज लोगों ने सहृदयतापूर्वक मेरा स्वागत किया और अंग्रेज जाति सम्बन्धी अपने विचारों को मैने बहुत नर्म कर दिया है। सर्वप्रथम मैंने यह पाया कि वे लोग जैसे लंड इत्यादि, जो इंग्लैण्ड से मुझ पर चोट करने आये थे, उनका कोई पता ही नहीं था। अंग्रेजों द्वारा उनके अस्तित्व की केवल उपेक्षा ही की जाती है। अंग्रेजी चर्च के व्यक्ति को छोड़कर कोई भी शिष्ट नहीं समझा जाता है। और इंग्लैण्ड के कुछ बहुत ही श्रेष्ठ लोग, जो अंग्रेजी चर्च से सम्बन्धित हैं, और कुछ ऊँचे ओहदे के लोग मेरे सच्चे मित्र हो गये हैं। अमेरिका में हुए अनुभवों की अपेक्षा यह बिल्कुल ही दूसरे किस्म का है। क्या ऐसा नहीं?

यहाँ के पादरी संघ-शासित गिरजे के सदस्यों, दूसरे धर्मान्ध व्यक्तियों तथा होटलों में हुए स्वागत इत्यादि के अनुभव के बारे में जब मैंने कहा, तो अंग्रेज लोग काफी देर तक हँसते रहे। मैं भी शीघ्र ही दो देशों की संस्कृति और शिष्टाचार का अंतर समझ गया और यह भी समझ पाया कि क्यों अमेरिकन लड़कियाँ यूरोपियनों से शादी करने

समूह में जाती हैं। वहाँ प्रत्येक व्यक्ति मेरे प्रति सहृदय था और स्त्री तथा पुरुष, दोनों वर्ग के मेरे मित्र हो गये हैं। कई, जो भद्र हैं, वसन्त में उत्सुकतापूर्वक मेरे लौटने की प्रतीक्षा करेंगे।

जहाँ तक वहाँ के मेरे कार्य का सम्बन्ध है, वेदान्त सम्बन्धी विचार अब तक इंग्लैण्ड के ऊँचे वर्गों में परिव्याप्त हो गया है। उच्च शिक्षा और ऊँची स्थिति के बहुत से लोगों ने, जिनमें पादरी कम नहीं थे, मुझसे कहा कि ग्रीक के द्वारा रोम की विजय का पुनरभिनय इंग्लैण्ड में हुआ।

भारतवर्ष में जो अंग्रेज रहे हैं, वे दो प्रकार के है। एक प्रकार के वे लोग हैं, जो प्रत्येक भारतीय वस्त्र से घृणा करते हैं, लेकिन वे अशिक्षित हैं। और दूसरे वे हैं, जिनके लिए भारत पुण्यभूमि है और यहाँ का वातावरण ही धार्मिक है।… और वे अपने हिदुत्व से हिन्दुओं को भी मात कर देते हैं।

वे महान् शाकाहारी हैं और वे इंग्लैण्ड में एक जाति बनाना चाहते हैं। निस्सन्देह अधिकांश अंग्रेजों को जाति में दृढ़ विश्वास है। सार्वजनिक भाषण के अतिरिक्त प्रति सप्ताह मुझे आठ व्याख्यान देना होता था, जिसमें इतनी भीड़ होती थी कि अधिकांश लोगों को, जिसमें उच्च श्रेणी की महिलाएँ भी होती थीं, फर्श पर बैठना पड़ता था और वे तनिक भी अन्यथा नहीं समझते थे। इंग्लैण्ड में पुरुष एवं महिलाएँ मुझे दृढ़ चित्त के मिले, जो किसी कार्य को आरम्भ करते हैं, तो फिर एक विशिष्ट अंग्रेजी निश्चय और शक्ति एवं योग्यता के साथ आगे बढ़ते हैं। इस वर्ष न्यूयार्क में मेरा कार्य अत्युत्तम रूप से चल रहा है। श्री लेगेट न्यूयार्क के बड़े धनी आदमी हैं और मुझमें बहुत अभिरूचि रखते हैं। न्यूयार्क के लोगों में अधिक स्थिरता है, देश के अन्य किसी भी भाग के लोगों की अपेक्षा। इसलिए मैंने यहीं अपना केन्द्र स्थापित करने का निश्चय किया है। इस देश के ‘मेथाडिस्ट’ और ‘प्रेसबिटेरियन’ जैसे अभिजात वर्ग के लोग मेरे उपदेशों को अद्भुत समझते हैं। इंग्लैण्ड में गिरजा-घर के अभिजात वर्ग के लोगों के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ दर्शन है।

इसके अतिरिक्त अमेरिकन महिलाओं का वार्तालाप तथा गप-शप की विशिष्टताएँ इंग्लैण्ड में नहीं पायी जाती हैं। अंग्रेज महिला मंथरमति होती हैं ; किन्तु जब वे किसी योजना या अभिप्राय को कार्यान्वित करती हैं , तो उसके पीछे उनका एक निश्चित संकल्प होता है और वे नियमित रूप से वहाँ मेरा कार्य कर रही हैं और प्रति सप्ताह विवरण भेजती हैं – जरा सोचो तो! यहाँ अगर एक सप्ताह के लिए मैं कहीं जाता हूँ, तो सब कुछ तितर-बितर हो जाता है। सबों को मेरा प्यार – सैम को और तुम्हें भी। प्रभु तुम्हें सदा-सर्वदा सुखी रखें।

सस्नेह तुम्हारा भाई,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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