स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती एफ० एच० लेगेट को लिखित (17 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती एफ० एच० लेगेट को लिखा गया पत्र)
१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
१७ मार्च, १९००
प्रिय माँ,
आपका सुन्दर पत्र पाकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई। आप आश्वस्त रहें कि मैं अपने मित्रों से बराबर सम्पर्क बनाये हूए हूँ। फिर भी थोड़ा विलम्ब हो जाने से घबड़ाहट हो सकती है।
डॉ० हीलर तथा श्रीमती हीलर इस नगर में श्रीमती मेल्टन के घर्षणों से काफी लाभान्वित होकर वापस लौटे हैं, जैसा कि वे स्वयं घोषित करते हैं। जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, मेरी छाती पर तो कुछ बड़े बड़े लाल चकत्ते उभर आये हैं। आगे किस विधि से उन्हें पूरा आराम होता है, यह मैं आपको यथासमय सूचित करूँगा। मेरा तो मामला ऐसा है कि उसे रास्ते पर आने में समय लगेगा।
आपकी और श्रीमती एडम्स की कृपाओं के लिए मैं अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। अवश्य ही मैं शिकागो जाऊँगा और उनसे भेंट करूँगा।
आपके क्या हाल-चाल हैं? यहाँ मैं ‘करो या मरो’ वाले सिद्धान्त के अनुसार कार्य कर रहा हूँ और अभी तक तो यह बुरा सिद्ध नहीं हुआ है। तीनों बहनों में से दूसरी श्रीमती हैन्सबॉरो यहाँ हैं और मेरी सहायता के लिए अनन्त परिश्रम कर रही हैं। ईश्वर उनका कल्याण करे। तीनों बहनें तीन देवदूत हैं, हैं न? ऐसी आत्माओं का यत्र-तत्र दर्शन इस जीवन की सभी व्यर्थताओं का बदला चुका देता है।
आपके कल्याण की मै सदैव प्रार्थना करता हूँ। मैं कहता हूँ आप भी तो एक देवदूत हैं। कुमारी केट को प्यार।
आपका पुत्र,
विवेकानन्द
पुनश्च – ‘माँ का शिशु’ कैसा है? कुमारी स्पेन्सर का क्या हाल है? उन्हें प्यार। आप तो जानती ही हैं कि पत्र-व्यवहार के मामले में मैं कितना ख़राब हूँ, पर मेरा हृदय कभी नहीं चूकता। आप कुमारी स्पेन्सर से इतना कह दें।
वि.