स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती इन्दुमती मित्र को लिखित (1897)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती इन्दुमती मित्र को लिखा गया पत्र)
काश्मीर,
१८९७
कल्याणीया,
इतने दिन तुम्हें पत्र न देने एवं बेलगाँव न जाने के कारण तुम नाराज न होना। मैं बहुत बीमार था और उस समय जाना मेरे लिए असम्भव था। अब हिमालय-भ्रमण के फलस्वरूप पहले जैसा स्वास्थ्य अधिक अंश में मैं प्राप्त कर सका हूँ। शीघ्र ही पुनः कार्य प्रारम्भ करने का विचार है। दो सप्ताह के अन्दर पंजाब जाना है तथा लाहौर एवं अमृतसर में दो-एक व्याख्यान देकर तुरन्त ही कराची होते हुए गुजरात तथा कच्छ आदि के लिए रवाना होना है। कराची में निश्चित ही तुम लोगों से भेंट करूँगा।
काश्मीर वास्तव में ही भूस्वर्ग है – ऐसा देश पृथ्वी में दूसरा नहीं है। यहाँ पर जैसे सुन्दर पहाड़, वैसी ही नदियाँ, वैसी ही वृक्ष-लताएँ, वैसे ही स्त्री-पुरुष एवं पशुपक्षी आदि सभी सुन्दर हैं। अब तक न देखने के कारण चित्त दुखी होता है। अपनी शारीरिक तथा मानसिक अवस्था मुझे सविस्तार लिखना तथा मेरा विशेष आशीर्वाद जानना। सदा ही तुम लोगों की मंगलकामना कर रहा हूँ, यह निश्चित जानना।
तुम्हारा,
विवेकानन्द