स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (15 नवम्बर, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
द्वारा ई. गर्नसी, एम. डी.
१८०, डब्ल्यू. ५९, मैड्रिड,
१५ नवम्बर, १८९९
प्रिय श्रीमती बुल,
आखिरकार अभी केम्ब्रिज आने का इरादा मैंने कर ही लिया है। जो कहानियाँ मैं शुरु कर चुका हूँ, उन्हें मुझे पूरी करना होगा। मैं नहीं समझता कि इनमें से पहली मार्गो ने मुझे वापस की थी।
मेरे कपड़े परसों तैयार हो जायेंगे और तब मैं चल पड़ने के लिए तैयार हो जाऊँगा। बस, भय मुझे सिर्फ इस बात का है कि वहाँ तमाम जाड़े मुझे लगातार जलसों और व्याख्यानों के कारण मानसिक शान्ति के बजाय अशान्ति ही झेलनी पड़ेगी। खैर, शायद आप वहाँ मेरे लिए कहीं किसी कमरे का प्रबन्ध कर सकें, जहाँ इन सब झंझटों से मैं अपने को बचाये रख सकूँ और फिर मैं एक ऐसे स्थान पर जाने से घबड़ा रहा हूँ, जहाँ कि परोक्ष रूप से एक भारतीय मठ होगा। इन मठवालों का नाम मात्र ही मुझे घबड़ा देने के लिए पर्याप्त है और वे इन पत्रों आदि से मार डालने को कृतसंकल्प हैं।
फिर भी जैसे ही मुझे कपड़े मिल जायेंगे, वैसे ही मैं आ जाऊँगा – इसी हफ्ते में। आपको मेरे खातिर न्यूयार्क आने की आवश्यकता नहीं। यदि आपको निजी काम हो तो और बात है। मॉण्टक्लेयर की श्रीमती ह्वीलर का एक अत्यन्त कृपापूर्ण निमन्त्रण मुझे मिला था। बोस्टन को रवाना होने के पूर्व कम-से-कम कुछ घण्टों के लिए मैं मॉण्टक्लेयर घूम पड़ूँगा।
मैं काफी अच्छा हूँ और ठीक ठाक हूँ; मेरी चिन्ता को छोड़कर मेरे साथ और कोई गड़बड़ी नहीं है और अब मुझे विश्वास हो गया है कि इसे भी मैं उखाड़ फेंकूँगा।
मुझे आपसे केवल एक चीज चाहिए – और मुझे भय है कि वह मुझे आपसे नहीं मिल सकेगी – वह यह कि आप भारत पत्र आदि लिखते समय उसमें अप्रत्यक्ष रूप से भी कहीं कोई मेरा उल्लेख न करें। मैं कुछ समय के लिए या शायद हमेशा के लिए छिपा रहना चाहता हूँ। मैं उस दिन को कितना कितना कोसता हूँ, जब मुझे पहले-पहल प्रसिद्धि मिली!
सस्नेह,
विवेकानन्द