स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (2 फरवरी, 1901)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
बेलूड़ मठ,
हावड़ा, बंगाल,
२ फरवरी, १९०१
प्रिय माँ,
कई दिन हुए मुझे आपका पत्र और उसके साथ १५० रू. का एक चेक मिला था। मैं इस चेक को भी पिछले तीन चेकों की भाँति अपने भाई को सुपुर्द कर दूंगा।
‘जो यहाँ है, मैं उससे दो बार मिला हूँ। वह लोगों से मिलने-मिलाने में व्यस्त है। श्रीमती सेवियर के इंग्लैण्ड से होकर यहाँ शीघ्र आने की आशा है। मैं पहले उन्हींके साथ इंग्लैण्ड जानेवाला था, लेकिन अब जैसी कि स्थिति हो गयी है, मुझे अपनी माँ के साथ एक लम्बी तीर्थयात्रा के लिए निकलना होगा।
बंग-भूमि का स्पर्श करते ही मेरी तंदुरूस्ती गिरने लगती है; ख़ैर, अब मैं इसकी चिन्ता नहीं करता। मैं और मेरा काम-धाम सब ठीक-ठाक चल रहा है।
मार्गट के सफल होने की बात जानकर प्रसन्नता हुई, लेकिन, जैसा कि ‘जो’ ने लिखा है, वह आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद सिद्ध नहीं हो रहा है, – बस यही तो कुल गड़बड़ी है। काम को चलाते भर जाना कोई महत्त्वपूर्ण बात नहीं, और फिर इतनी दूर लन्दन के काम से कलकत्ता पर क्या असर पड़ता है? ख़ैर, जगन्माता सब कुछ जानती हैं। मार्गट रचित ‘काली माता’ (Kali, the Mother) की सब प्रशंसा कर रहे हैं, किन्तु खेद की बात है कि उन्हें पुस्तक उपलब्ध नहीं हो पाती – बुकसेलर लोग किताब की बिक्री के प्रति इस हद तक उदासीन हैं!
इस नूतन शताब्दी में आप और आपके प्रियजन एक और महान् भविष्य के लिए स्वास्थ्य तथा साधन प्राप्त करे, यही मेरी सतत प्रार्थना है।
विवेकानन्द