स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (26 जनवरी, 1901)

(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)

बेलूड़ मठ,
हावड़ा जिला,
बंगाल,
२६ जनवरी, १९०१

प्यारी माँ,

उत्साहित करनेवाले इन शब्दों के लिए आपको अनेकानेक धन्यवाद। मुझे इस समय उनकी बहुत आवश्यकता है। नयी शताब्दी के आगमन से अंधकार दूर नहीं हुआ है, बल्कि और भी घना होता जा रहा है। मैं श्रीमती सेवियर से मिलने मायावती गया था । राह में ही खेतड़ी के महाराजा की मृत्यु का संवाद मिला। सुना है कि वे आगरे में किसी स्थापत्य-स्मारक की मरम्मत अपने ख़र्च से करवा रहे थे। और इसी सिलसिले में किसी गुम्बद का निरीक्षण कर रहे थे। गुम्बद का एक हिस्सा नीचे गिर पड़ा और उनकी तत्काल मृत्यु हो गयी।

तीनों चेक आ गये हैं। जब मैं अपनी बहन से मिलूँगा, उसे दे दूँगा ;

‘जो’ यहीं है, लेकिन अब तक मेरी मुलाकात नहीं हुई है।

बंगाल की धरती पर, ख़ास कर मठ में, पैर रखते ही मेरा दमा का दौरा फिर शुरू हो जाता है। बंगाल छोड़ा और फिर स्वस्थ!

अगले सप्ताह मैं अपनी माँ को तीर्थयात्रा पर ले जा रहा हूँ। तीर्थस्थानों की परिक्रमा करने में – संभव है महीनों लग जायँ। यह, हिंदू विधवाओं की महान् लालसा होती है। मैंने अपने स्वजन-परिजन के लिए सदा दुःख ही बटोरा। मैं कम से कम उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने की चेष्टा कर रहा हूँ।

मार्गट का समाचार सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। यहाँ सभी फिर से उसका स्वागत करने को इच्छुक हैं। आशा है डाक्टर बोस अब तक पूर्ण स्वस्थ हो चुके होंगे।

मुझे श्रीमती हैम्मॉण्ड की एक बहुत प्यारी चिट्ठी मिली है। महान् आत्मा हैं, वह।

बहरहाल, मैं इस बार बहुत शांत और अविक्षुब्ध हूँ और देखता हूँ कि सभी बातें आशा से अधिक ठीक हैं। प्यार के साथ –

सदैव तुम्हारा पुत्र,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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