स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (29 मार्च, 1901)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
ढाका,
२९ मार्च, १९०१
प्रिय माँ,
इस समय तक तुम्हें मेरा ढाका से लिखा दूसरा पत्र मिल गया होगा। सारदानन्द कलकत्ता में ज्वर से बुरी तरह ग्रस्त हो गया था। कलकत्ता तो इस वर्ष नरक बन गया है। वह अच्छा हो गया है, अब मठ में है। ईश्वर की कृपा से मठ हमारी बंग-भूमि के स्वस्थतम स्थानों में से है।
मैं नहीं जानता कि आप और मेरी माँ के बीच क्या बातचीत हुई। उस समय मैं नहीं था। मेरा अनुमान है कि माँ ने आपसे मार्गट को देखने की इच्छा प्रदर्शित की होगी और कुछ नहीं।
मार्गट को मेरी यह सलाह है कि वह इंग्लैण्ड में रहकर अपनी योजनाओं को पक्का करे और काफी हद तक उन्हें क्रियान्वित भी करे, तब कहीं लौटने की बात सोचे। भले और ठोस काम के लिए प्रतीक्षा तो करनी ही पड़ती है।
आवश्यक शक्ति प्राप्त करते ही सारदानन्द श्रीमती बनर्जी के पास, जो कुछ दिन के लिए कलकत्ता आयी थीं, दार्जिलिंग जाना चाहता है।
जापान से ‘जो’ के बारे में मुझे कोई ख़बर नहीं मिली। श्रीमती सेवियर शीघ्र ही वहाँ जानेवाली हैं। करीब पाँच दिन से ऊपर हुए मेरी माँ, चाची और भाई ढाका आये थे – ब्रह्मपुत्र नदी का बड़ा भारी स्नान-पर्व पड़ा था। जब भी कभी ग्रहों का कोई विशिष्ट एवं दुर्लभ संयोग उपस्थित होता है, तब बड़ा भारी जनसमुदाय नदी के किसी ख़ास स्थान पर एकत्र हो जाता है। इस वर्ष लक्षाधिक लोगों की भीड़ हुई थी, मीलों तक नदी में केवल नावें ही नावें दिखायी पड़ती थीं।
यद्यपि नदी का पाट इस स्थान पर लगभग एक मील चौड़ा है, फिर भी वह कीचड़ से भर गया था। लेकिन जमीन फिर भी काफी ठोस रही और इसलिए हम अपना पूजा-स्नान आदि सम्पन्न कर सके।
ढाका मुझे अच्छा लग रहा है। मैं अपनी माँ तथा अन्य महिलाओं को चन्द्रनाथ ले जा रहा हूँ। यह स्थान बंगाल के बिल्कुल पूर्वी सिरे पर है।
मैं सकुशल हूँ, आशा है आप, आपकी पुत्री तथा मार्गट भी स्वस्थ-सानन्द हैं। चिरस्नेह के साथ –
आपका पुत्र,
विवेकानन्द
पुनश्च – मेरी माँ तथा भाई आपको और मार्गट को प्यार भेजते हैं। मुझे तारीख नहीं मालूम।
वि.