स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (4 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
१५०२, जोन्स स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
४ मार्च, १९००
प्रिय धीरा माता,
एक माह से मुझे आपका कुछ भी समाचार प्राप्त नहीं हुआ है। मैं सैन फ़्रांसिस्को में हूँ। मेरे लेखों ने लोगों के मन को पहले ही से प्रस्तुत कर रखा था, अब वे दल बाँधकर आ रहे हैं; किन्तु जिस समय रूपये का प्रश्न उठेगा, तब देखना है कि लोगों में उत्साह कितना रहता है!
श्रद्धेय बेंजमिन मिल्स ने ओकलैंड में मुझे बुलाया था तथा मेरे वक्तव्य के प्रचारार्थ अधिक संख्या में लोगों को एकत्र किया था। वे सपत्नीक मेरे ग्रन्थों को पढ़ते हैं तथा सदा से ही मेरे समाचारादि लेते रहे हैं।
कुमारी थर्सबी का भेजा हुआ परिचय-पत्र मैने श्रीमती हर्स्ट को भेज दिया था। आगामी रविवार के दिन अपनी संगीत-चर्चा में उन्होंने मुझे आमन्त्रित किया है।
मेरा स्वास्थ्य प्रायःएक ही प्रकार है – कोई ख़ास परिवर्तन मुझे दिखायी नहीं दे रहा है। सम्भवतः स्वास्थ्य की उन्नति ही हो रही है – किन्तु उसकी प्रगति बाहर से दिखायी नहीं देती है। मैं ऐसे ऊँचे स्वर से भाषण दे सकता हूँ कि जिससे ३,००० श्रोता मेरे व्याख्यान को सुन सकें; ओकलैंड में मुझे दो बार ऐसा करना पड़ा था। दो घंटे तक भाषण देने के बाद भी मुझे नींद अच्छी तरह से आती है।
मुझे पता चला है कि निवेदिता आपके साथ है। आप कब फ़्रांस जा रही हैं? अप्रैल में इस स्थान को छोड़कर मैं पूर्व की ओर रवाना हो रहा हूँ। यदि सम्भव हो सका तो मई में इंग्लैण्ड जाने की मेरी विशेष इच्छा है। एक बार इंग्लैण्ड में प्रयत्न किये बिना मेरे लिए स्वदेश लौटना ठीक न होगा।
ब्रह्मानन्द तथा सारदानन्द के पास से मुझे एक अच्छा पत्र प्राप्त हुआ है। वे सब कुशलपूर्वक हैं। वे नगरपालिका को उसकी ग़लतफहमी समझाने के लिए प्रयत्नशील हैं। इससे मुझे खुशी है। इस मायिक संसार में द्वेष करना उचित नहीं है; किन्तु ‘बिना काटे फुफकारने में कोई दोष नहीं है’ इतना ही पर्याप्त है।
इसमें सन्देह नहीं कि सब कुछ ठीक हो जायगा – और यदि ऐसा न हो, तो भी अच्छा है। श्रीमती सेवियर का भी एक अच्छा पत्र आया है। वे लोग पहाड़ पर आनन्दपूर्वक हैं। श्रीमती वधान् कैसी हैं?… तुरीयानन्द कैसा है?
आप मेरा असीम स्नेह तथा कृतज्ञता ग्रहण करें।
सतत आपका,
विवेकानन्द