स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (8 अप्रैल, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
८ अप्रैल, १९००
प्रिय धीरा माता,
इसके साथ अभेदानन्द का एक लम्बा पत्र भेज रहा हूँ। वह पूर्णतया विचलित जान पड़ता है। मैं इस बात पर निश्चित हूँ कि थोड़ी सी दया उसको पूर्णरूप से वश में कर लेगी। वह जानता है की आप उसे न्यूयार्क से बाहर खदेड़ना चाहती हैं – आदि आदि। वह मेरे आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है। मैंने उससे यह कह दिया है कि सारे विषयों में वह आप पर पूर्ण विश्वास रखे तथा जब तक मैं न पहुँच जाऊँ, तब तक वह न्यूयार्क में ही रहे।
मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि न्यूयार्क की वर्तमान परिस्थिति में वे लोग मुझे वहाँ चाहते हैं; क्या आपका भी विचार ऐसा ही है? तब तो फिर शीघ्र ही चल देना है। अपने मार्गव्यय के लिए मैं पर्याप्त धन संग्रह कर रहा हूँ। मार्ग में शिकागो तथा डिट्राएट में उतरने की इच्छा है। शायद तब तक आप चल देंगी।
अभेदानन्द ने अब तक बहुत अच्छी तरह से कार्य किया है; और आपको यह पता है कि मैं अपने कार्यकर्ताओं के कार्यों में कतई हस्तक्षेप नहीं करता हूँ। जो कार्यशील होते हैं, उनकी एक निजी कार्यपद्धति होती है एवं यदि कोई उसमें हस्तक्षेप करना चाहे, तो वे उसे ऐसा करने से रोकते हैं। इसलिए अपने कार्यकर्ताओं को मैं पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ कार्य करने का अवसर देता हूँ। आप स्वयं ही कार्यक्षेत्र में हैं और सब कुछ जानती हैं। मुझे क्या करना चाहिए, इस बारे में आपसे मैं उपदेश चाहता हूँ।
कलकत्ते के लिए जो धन भेजा गया है, वह यथासमय वहाँ पहुँच चुका है। इस डाक से मुझे इसकी ख़बर मिली है। मेरी बहन ने अपनी ओर से अभिनन्दन एवं कृतज्ञता प्रेषित की है; लेकिन वह दुःखी है कि वह अंग्रेजी नहीं लिख सकती।
मैं क्रमशः स्वस्थ होता जा रहा हूँ, यहाँ तक कि पहाड़ पर भी मैं चढ़ सकता हूँ। कभी कभी शरीर अस्वस्थ हो जाता है, किन्तु अस्वस्थता का समय और पुनरावृत्ति क्रमशः घट रहे हैं। श्रीमती मिल्टन को मैं धन्यवाद भेज रहा हूँ।
सिरी ग्रैण्डर ने एक संक्षिप्त पत्र लिखा है। उस पर विश्वास किया गया है, यह देखकर वह बेचारी बहुत ही कृतज्ञ है – वह भी ठीक श्रीमती लेगेट की तरह ही है। बहुत ही सुन्दर बात है, वाह, शाबाश! धन भी ऐसी कोई बुरी चीज नहीं है, यदि उसका सम्बन्ध अच्छे व्यक्ति से हो। मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि ‘सिरी’ सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ हो उठे – ओह, बेचारी बहुत ही कष्ट में है।
सम्भवतः दो सप्ताह के अन्दर ही मैं यहाँ से चल दूँगा। पहले मुझे ‘स्टार क्लोन’ नामक एक स्थान पर जाना है, उसके बाद पूर्व की ओर रवाना होऊँगा। शायद ‘डेलवर’ भी जाना पड़े।
‘जो’ को हार्दिक स्नेह ज्ञापन कर रहा हूँ।
आपकी चिर सन्तान,
विवेकानन्द
पुनश्च – इसमें कोई सन्देह नहीं कि अन्ततः मैं स्वस्थ हो जाऊँगा। भाप के ईंजन की तरह मैं कार्य करता जा रहा हूँ – रसोई बनाता हूँ, इच्छानुसार भोजन करता हूँ, एवं इतने पर भी मुझे नींद ठीक आती है और मैं स्वस्थ हूँ – यदि आप ये देखतीं, तो बहुत ही अच्छा होता।
अब तक मैंने कुछ भी नहीं लिखा, क्योंकि समयाभाव था। श्रीमती लेगेट स्वस्थ हो चुकी हैं एवं सदा की भाँति चल-फिर लेती हैं – यह जानकर मुझे खुशी हुई। शीघ्र ही वे पूर्णरूप से स्वस्थ हों, यही मेरी इच्छा तथा प्रार्थना है। वि.
पुनश्च – श्रीमती सेवियर के एक सुन्दर पत्र से यह पता चला कि उन लोगों ने अच्छी तरह से कार्य चालू कर रखा है! कलकत्ते में भयानक रूप से प्लेग शुरू हो गया है ; किन्तु अब की बार तदर्थ कोई हलचल नहीं है। वि.
पुनश्च – क्या आपने ‘अ’ को बता दिया है कि मैंने सम्पूर्ण कार्यभार आप पर छोड़ रखा है? हाँ, आपको यह अच्छी प्रकार से विदित है कि कार्य कैसे किया जाता है; लेकिन इससे वह दुःखित प्रतीत होता है।
वि.