स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (अगस्त, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
सहस्रद्वीपोद्यान,
अगस्त, १८९५
प्रिय श्रीमती बुल,
…श्री स्टर्डी का, जिनके बारे में मैंने उस दिन आपको लिखा है, और एक पत्र मिला। उसे मैं आपके पास भेज रहा हूँ। सब कुछ मानो पहले ही से अपने आप ठीक होते जा रहा है। श्री लेगेट के आमन्त्रण-पत्र के साथ इस पत्र को मिलाकर देखने से क्या यह आपको दैव का बुलावा मालूम नहीं होता है? मैं तो यही मानता हूँ; अतः उसका अनुसरण कर रहा हूँ। अगस्त के अन्त में श्री लेगेट के साथ मैं पेरिस जा रहा हूँ एवं वहाँ से लन्दन जाऊँगा।… हेल परिवार से मिलने के लिए मुझे शिकागो जाना है। इसलिए ग्रीनेकर-सम्मेलन में मैं सम्मिलित नहीं हो सका।
मेरे तथा मेरे गुरुभाइयों के कार्यों में आप जितनी सहायता कर सकती हैं, इस समय मैं आपसे उतनी ही सहायता चाहता हूँ। अपने देशवासियों के प्रति मैंने अपना थोड़ा सा कर्तव्य निभाया है। अब जगत् के लिए – जिससे कि मुझे यह शरीर मिला है, देश के लिए – जिसने कि मुझे यह भावना प्रदान की है तथा मनुष्य-जाति के लिए – जिसमें कि मैं अपनी गणना कर सकता हूँ – कुछ करना है। जितनी ही मेरी उम्र बढ़ रही है, उतना ही मैं ‘मुनष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठ है’ – हिन्दुओं की इस धारणा का तात्पर्य अनुभव कर रहा हूँ। मुसलमान भी यही कहते हैं। अल्लाह ने देवदूतों से आदम को प्रणाम करने के लिए कहा था। इबलीस (Iblis) ने ऐसा नहीं किया, इसलिए वह शैतान (Satan) बना। यह पृथ्वी सब स्वर्गों से ऊँची है – सृष्टि का यही सर्वश्रेष्ठ विद्यालय है। मंगल तथा बृहस्पति ग्रह के लोग हम लोगों की अपेक्षा उच्च श्रेणी के नहीं हैं – क्योंकि वे हमारे साथ किसी प्रकार का सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकते। तथाकथित उच्च श्रेणी के प्राणी अर्थात् मरे हुए लोग अन्य प्रकार के देहधारी मनुष्यों के सिवाय और कुछ नहीं है; सूक्ष्म होने पर भी उनके शरीर वास्तव में हस्तपदादिविशिष्ट मनुष्य-शरीर ही हैं और वे इसी पृथ्वी के किसी दूसरे आकाश में रहते हैं तथा एकदम अदृश्य भी नहीं हैं। हम लोगों की तरह ही उनमें चिंतन-शक्ति, ज्ञान तथा अन्यान्य सब कुछ विद्यमान है। इसलिए वे भी मनुष्य ही हैं। देवता तथा देवदूतों के बारे में भी यही बात है। किन्तु केवल मनुष्य ही ईश्वर बन सकता है तथा देवादि को पुनः ईश्वरत्व-प्राप्ति के लिए मनुष्य-जन्म धारण करना पड़ेगा। मैक्स मूलर का अन्तिम लेख आपको कैसा लगा?
आपका,
विवेकानन्द