स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – राव बहादुर नरसिंहाचारियर को लिखित (23 जून, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का राव बहादुर नरसिंहाचारियर को लिखा गया पत्र)

शिकागो,
२३ जून, १८९४

प्रिय महोदय,

चूँकि आप मुझ पर सदैव अनुग्रह करते रहते हैं, अतः मैं आपसे एक विशेष अनुरोध करना चाहता हूँ। श्रीमती पॉटर पामर संयुक्त राज्य (अमेरिका) की एक नेतृस्थानीया महिला हैं। वे ‘महामेला’ की सभानेत्री थीं। समस्त संसार के नारी समाज की दशा को उन्नत बनाने के लिए विशेष उत्साही हैं तथा महिलाओं की एक बड़ी संस्था की वे प्रधान कार्यकर्त्री हैं। लेडी डफरिन की वे घनिष्ठ मित्र हैं एवं अपनी धन-सम्पत्ति तथा पद-मर्यादा के कारण यूरोपीय राजपरिवारों से उनको बहुत सम्मान मिला है। यहाँ पर उन्होंने मेरे साथ अत्यन्त सदय व्यवहार किया है वे इस समय चीन, जापान, स्याम तथा भारत भ्रमण करने जा रही हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत के गवर्नर तथा उच्च वर्ग उनकी यथोचित आदर-अभ्यर्थना करेंगे। किन्तु अंग्रेज राजकर्मचारियों की सहायता लिये बिना वे हमारे समाज को देखने के लिए विशेष उत्सुक हैं। मैंने भारतीय महिलाओं की दशा सुधारने के लिए आपके महान् प्रयास तथा मैसूर स्थित आपके अद्भुत कॉलेज का उल्लेख उनसे कई बार किया है। हमारे देशवासी जब अमेरिका आते हैं, तब यहाँ के लोग जिस प्रकार उनका आदर-सत्कार करते हैं, उसके प्रतिपादनस्वरूप ऐसे व्यक्तियों की कुछ आवभगत करना मैं उचित समझता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि आप लोग इनकी आदर-अभ्यर्थना करेंगे तथा हमारे देश की स्री जाति की वास्तविक दशा का जिससे थोड़ा-बहुत भी परिचय इनको मिल सके, इसकी व्यवस्था करेंगे। वे मिशनरी नहीं हैं, या उस प्रकार के कट्टर ईसाई भी नहीं – आप उसकी चिन्ता न करें। धर्म विषयक मतभेदों से दूर रहकर वे समस्त संसार की नारी जाति की दशा सुधारने के लिए काम करना चाहती हैं। उनके कार्य में सहायता प्रदान करने का अर्थ इस देश में मुझे भी बहुत कुछ सहायता पहुँचाना है। प्रभु आपको आशीर्वाद प्रदान करें।

चिर स्नेहास्पद आपका,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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