स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (11 नवम्बर, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)

१४, ग्रेकोट गार्डन्स,
वेस्टमिनिस्टर, एस. डब्ल्यू.,
११ नवम्बर, १८९६

प्रिय आलासिंगा,

बहुत संभव है कि मैं १६ दिसम्बर या उसके दो एक दिन बाद यहाँ से प्रस्थान करूँ। यहाँ से इटली जाऊँगा और वहाँ के कुछ स्थानों को देखने के बाद नेपुल्स में स्टीमर पर सवार हो जाऊँगा। कुमारी मूलर, श्री और श्रीमती सेवियर तथा गुडविन नामक एक युवक मेरे साथ चल रहे हैं। सेवियर दम्पत्ति अल्मोड़े में बसने जा रहे हैं और कुमारी मूलर भी। सेवियर भारतीय सेना में पाँच साल तक अफसर के पद पर थे। अतः भारत के बारे में उन्हें काफी जानकारी है। कुमारी मूलर थियोसॉफिस्ट थीं जिन्होंने अक्षय को गोद लिया। गुडविन अंग्रेज हैं जिनके द्वारा शीघ्रलिपि में तैयार की गयी टिप्पणियों से पुस्तिकाओं का प्रकाशन सम्भव हुआ।

मैं कोलम्बो से सर्वप्रथम मद्रास पहुँचूँगा। अन्य लोग अल्मोड़े जायेंगे। वहाँ से मैं कलकत्ता जाऊँगा। जब मैं यहाँ से प्रस्थान करूँगा, तब ठीक-ठीक सूचना देते हुए पत्र लिखूँगा।

तुम्हारा शुभाकक्षी,

विवेकानन्द

पुनश्च – ‘राजयोग’ पुस्तक के प्रथम संस्करण की सभी प्रतियाँ बिक गयीं और द्वितीय संस्करण छपने के लिए प्रेस में है। भारत और अमेरिका सबसे बड़े खरीददार हैं।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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