स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित (1894)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
संयुक्त राज्य अमेरिका,
१८९४
प्रिय आलासिंगा,
एक पुरानी कहानी सुनो। एक निकम्मे भिखमंगे ने सड़क पर चलते-चलते एक वृद्ध को अपने मकान के द्वार पर बैठा देखकर रुककर उससे पूछा – “अमुक ग्राम कितनी दूर है?” बुढ्ढा चुप रहा। भिखमंगे ने कई बार प्रश्न किया, परन्तु उत्तर न मिला। अन्त में जब वह उकताकर वापस जाने लगा, तब बुढ्ढे ने खड़े होकर कहा, “वह ग्राम यहाँ से एक मील है।” भिखमंगा कहने लगा, “जब मैंने तुमसे पहली बार पूछा था, तब तुमने क्यों नहीं बताया?” बुढ्ढे ने उत्तर दिया, “क्योंकि पहले तुमने जाने के लिए लापरवाही दिखायी थी और दुविधा में मालूम होते थे ; परन्तु अब तुम उत्साहपूर्वक आगे बढ़ रहे हो, इसलिए अब तुम उत्तर पाने के अधिकारी हो गए हो!”
क्या तुम यह कहानी याद रखोगे मेरे बच्चे? काम आरम्भ करो, शेष सब कुछ आप ही आप हो जाएगा।अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्। (गीता ९/२२) – ‘जो सब कुछ त्यागकर अनन्य भाव से चिन्तन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, उन नित्यसमाहित व्यक्तियों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।’ – यह भगवान् की वाणी है, कवि-कल्पना नहीं।
बीच-बीच में मैं तुम्हारे पास कुछ रकम भेजता जाऊँगा, क्योंकि पहले कलकत्ते में भी मुझे कुछ रकम भेजनी पड़ेंगी – मद्रास की अपेक्षा अधिक भेजनी पड़ेगी। वहाँ का कार्य मुझ पर ही निर्भर है। वहाँ कार्य केवल शुरू ही हुआ हो, ऐसी बात नहीं, बल्कि वह तीव्र गति से अग्रसर हो रहा है। उसे पहले देखना होगा। साथ ही कलकत्ते की अपेक्षा मद्रास में सहायता मिलने की आशा अधिक है। मेरी इच्छा है कि ये दोनों केन्द्र आपस में मिल-जुलकर काम करें। अभी शुरू-शुरू में पूजा-पाठ, प्रचार आदि के रूप में कार्य आरम्भ कर देना चाहिए। सभी के मिलने के लिए एक स्थान चुन लो एवं प्रति सप्ताह वहाँ इकट्ठे होकर पूजा करो, साथ ही भाष्य सहित उपनिषद् पढ़ो; इस तरह धीरे-धीरे काम और अध्ययन, दोनों करते जाओ। तत्परता से काम में लगे रहने पर सब ठीक हो जाएगा।
… अब काम में लग जाओ! जी. जी. का स्वभाव भावप्रधान है, तुम समबुद्धि के हो, इसीलिए दोनों मिल-जुलकर काम करो। काम में लीन हो जाओ – अभी तो काम का आरम्भ ही हुआ है। प्रत्येक राष्ट्र को अपनी रक्षा स्वयं करनी होगी; हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान के लिए अमेरिका की पूँजी पर भरोसा न करो, क्योंकि वह एक भ्रम ही है। मैसूर एवं रामनाड़ के राजा तथा दूसरे और लोगों को भी इस कार्य में सहानुभूति हो, ऐसा प्रयत्न करो। भट्टाचार्य के साथ परामर्श करके कार्य आरम्भ कर दो। केन्द्र बना सकना बहुत ही उत्तम बात होगी। मद्रास जैसे बड़े शहर में इसके लिए स्थान प्राप्त करने का यत्न करो और संजीवनी शक्ति का चारों ओर प्रसार करते जाओ। धीरे-धीरे आरम्भ करो। पहले गृहस्थ प्रचारकों से श्रीगणेश करो, धीर-धीरे वे लोग भी आएँगे, जो इस काम के लिए अपना जीवन अर्पित कर देंगे। शासक बनने की कोशिश मत करो – सबसे अच्छा शासक वह है, जो सबकी सेवा कर सकता है। मृत्युपर्यन्त सत्यपथ से विचलित न होओ। हम काम चाहते हैं। हमें धन, नाम और यश की चाह नहीं। कार्यारम्भ इतना सुन्दर हुआ है कि यदि इस समय तुम लोग कुछ न कर सके, तो तुम लोगों पर मेरा बिल्कुल विश्वास नहीं रहेगा। अपने कार्य का प्रारम्भ अति सुन्दर हुआ है। भरोसा रखो। जी. जी. को अपनी गृहस्थी के भरण-पोषण के लिए कुछ करना तो नहीं पड़ता, फिर मद्रास में एक स्थायी स्थान का प्रबन्ध करने के लिए वह चन्दा इकट्ठा क्यों नहीं करता? मद्रास में केन्द्र स्थापित करने के लिए जनता में रुचि पैदा करो और कार्य प्रारम्भ कर दो। शुरू में प्रति सप्ताह एकत्र होकर स्तोत्र पाठ, शास्त्र-पाठ आदि से प्रारम्भ करो। पूर्णतः निःस्वार्थ बनो, फिर सफलता अवश्यम्भावी है।
अपने कार्य की स्वाधीनता रखते हुए कलकत्ते के अपने श्रेष्ठ जनों के प्रति सम्पूर्ण श्रद्धा-भक्ति रखना।
मेरी सन्तानों को आवश्यकता पड़ने पर एवं अपने कार्य की सिद्धि के लिए आग में कूदने को भी तैयार रहना चाहिए। इस समय केवल काम, काम, काम! बाद में किसी समय काम स्थापित कर किसने कितना किया है, यह देखेंगे। धैर्य, अध्यवसाय और पवित्रता बनाये रखो।
मैं अभी हिन्दू धर्म पर कोई पुस्तक नहीं लिख रहा हूँ। मैं केवल अपने विचारों को स्मरणार्थ लिख लेता हूँ। मुझे मालूम नहीं कि मैं उन्हें कभी प्रकाशित कराऊँगा या नहीं। किताबों में क्या धरा है? दुनिया पहले ही बहुत-सी मूर्खताओं से भरी पड़ी है। यदि तुम वेदान्त के आधार पर एक पत्रिका निकाल सको, तो हमारे कार्य में सहायता मिलेगी। चुपचाप काम करो, दूसरों में दोष न निकालो। अपना सन्देश दो, जो कुछ तुम्हें सिखाना है, सिखाओ और वहीं तक सीमित रहो। शेष परमात्मा जानते हैं।
मिशनरी लोगों को यहाँ कौन पूछता है? बहुत चिल्लाने के बाद वे लोग अब चुप हुए हैं। मुझे और समाचार-पत्र न भेजो, क्योंकि मैं उनकी निन्दा की ओर ध्यान नहीं देता। इसी वजह से यहाँ मेरे बारे में लोगों की अच्छी धारणा है।
कार्य के अग्रसर होने के लिए कुछ शोर-गुल की आवश्यकता थी, वह बहुत हो चुका। देखते नहीं, दूसरे लोग बिना किसी भित्ति के ही कैसे अग्रसर हो रहे हैं? और इतने सुन्दर तरीके से तुम लोगों का कार्य आरम्भ हुआ है कि यदि तुम लोग कुछ न कर सके, तो मुझे घोर निराशा होगी। यदि तुम सचमुच मेरी सन्तान हो, तो तुम किसी वस्तु से न डरोगे, न किसी बात पर रुकोगे। तुम सिंहतुल्य होगे। हमें भारत को और पूरे संसार को जगाना है। कायरता को पास न आने दो। मैं नहीं न सुनूँगा, समझे? मृत्युपर्यन्त सत्य-पथ पर अटल रहकर मेरे कथनानुसार कार्यरत रहना होगा, फिर कार्य-सिद्धि अवश्यम्भायी है।… इसका रहस्य है गुरु-भक्ति, मृत्यपर्यन्त गुरु में विश्वास। क्या यह तुममें है? मेरा पूर्ण विश्वास है कि यह तुममें है। और तुम्हें यह भी विदित है कि मुझे तुम पर पूरा भरोसा है, इसलिए काम में लग जाओ। सिद्धि अवश्यम्भावी है। तुम्हें पग-पग पर मेरा आशीर्वाद है; मेरी प्रार्थना सदैव तुम्हारे साथ रहेगी। मेल से काम करो। हर एक के प्रति सहनशील रहो। सभी से मुझे प्रेम हैं। सदैव मेरी दृष्टि तुम पर है। आगे बढ़ो! आगे बढ़ो! अभी तो आरम्भ ही है। तुम जानते हो न कि मेरे यहाँ थोड़े से काम की भारत में बड़ी गूँज सुनायी दे रही है? इसलिए मैं यहाँ से जल्दी नहीं लौटूँगा। मेरा विचार स्थायी रूप से यहाँ कुछ कर जाने का है, और इस लक्ष्य को अपने आगे रखकर मैं प्रतिदिन काम कर रहा हूँ। दिन-प्रतिदिन अमेरिकावासियों का मैं विश्वासपात्र बनता जा रहा हूँ।… अपने हृदय और आशाओं को संसार के समान विस्तीर्ण कर दो। संस्कृत का अध्ययन करो, विशेषकर वेदान्त के तीनों भाष्यों का। तैयार रहो, क्योंकि भविष्य के लिए मेरे पास बहुत- सी योजनाएँ हैं। आकर्षक वक्ता बनने का प्रयत्न करो। लोगों में चेतना का संचार करो। यदि तुममें विश्वास होगा, तो सब चीजें तुम्हें मिल जाएँगी। यही बात किडी से कह दो, बल्कि वहाँ के मेरे सभी बच्चों से कह दो। समय पाकर वे बड़े-बड़े काम करेंगे, जिसे देखकर संसार आश्चर्य करेगा। निराश न होओ और काम करो। मुझे कुछ काम करके दिखाओ – एक मन्दिर, एक प्रेस, एक पत्रिका या हम लोगों के ठहरने के लिए एक मकान। यदि मद्रास में मेरे ठहरने के लिए एक मकान का प्रबन्ध न कर सके, तो फिर मैं वहाँ कहाँ रहूँगा? लोगों में बिजली भर दो! चन्दा इकट्ठा करो एवं प्रचार करो। अपने जीवन के ध्येय पर दृढ़ रहो। अभी तक जो कार्य हुआ है, बहुत अच्छा हुआ है, इसी तरह और भी अच्छे और उससे भी अच्छे कार्य करते हुए आगे बढ़े चलो। मेरा विश्वास है कि इस पत्र के उत्तर में तुम लिखोगे कि तुमने कुछ काम किया है।
लोगों से लड़ाई न करो ; किसी से वैरभाव मोल न लो। यदि नत्थू-खैरे जैसे लोग ईसाई बनते हैं, तो हम क्यों बुरा मानें? जो धर्म उन्हें अपने मन के अनुकूल जान पड़े, उसका अनुगामी उन्हें बनने दो। तुम्हें वाद-विवाद में पड़ने से क्या मतलब? लोगों के भिन्न मतों को सहन करो। अन्ततोगत्वा धैर्य, पवित्रता एवं अध्यवसाय की जीत होगी।
तुम्हारा,
विवेकानन्द