स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित (21 फरवरी, 1893)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)

द्वारा बाबू मधुसूदन चटर्जी,
सुपरिन्टेंडिंग इंजीनियर,
खर्त्तावाद, हैदराबाद,
२१ फरवरी, १८९३

प्रिय आलासिंगा,

स्टेशन पर मुझे लेने के लिए तुम्हारा वह युवक ग्रेजुएट मित्र तथा एक बंगाली सज्जन आये थे। इस समय मैं उस बंगाली सज्जन के यहाँ हूँ – कल तुम्हारे उस युवक मित्र के यहाँ जाकर कुछ दिन रहूँगा – तदनन्तर यहाँ के द्रष्टव्य स्थान देखने के बाद कुछ दिन में ही मैं मद्रास लौटूँगा। अत्यन्त दुःख के साथ मैं तुम्हें यह सूचित कर रहा हूँ कि इस समय मेरे लिए पुनः राजपूताना लौटना सम्भव नहीं है। अभी से यहाँ अत्यन्त गर्मी पड़ रही है, पता नहीं, राजपूताने में और भी कितनी भीषण गर्मी होगी और मैं गर्मी बिल्कुल सहन नहीं कर सकता। अतः इसके बाद यहाँ से मुझे बंगलोर जाना पड़ेगा, तत्पश्चात् उटकमण्ड जाकर मुझे गर्मी बिताना है। गर्मी में मानो मेरा मस्तिष्क खौल जाता है।

अतः मेरी सारी योजना काफूर हो गयी और इसलिए मैं पहले ही मद्रास से शीघ्रातिशीघ्र चल देने के लिए व्यग्र था। तब मुझे अमेरिका भेजने के निमित्त उत्तर भारत के किसी राजा का सहयोग प्राप्त करने के लिए महीनों का समय मिल जाता। किन्तु क्या करूँ, अब तो अत्यधिक विलम्ब हो चुका है। पहले तो ऐसी गर्मी में कहीं दौड़-धूप न कर सकूँगा – ऐसा करने से मुझे अपने जीवन से ही हाथ धोना पड़ेगा और दूसरे राजपूताने के मेरे घनिष्ठ मित्र मुझे पाकर अपने समीप से हिलने न देंगे तथा मुझे वे पाश्चात्य देश में न जाने देंगे। अतः अपने मित्रवर्ग से न मिलकर किसी नवीन व्यक्ति का आश्रय लेने का मेरा विचार था, किन्तु मद्रास में विलम्ब हो जाने के कारण मेरी सारी आशाओं पर पानी फिर गया। अत्यन्त दुःख के साथ अब उस प्रयास को त्याग देना पड़ा। ईश्वर की जो इच्छा है, वही पूर्ण हो! किन्तु तुम यह प्रायः निश्चित समझो कि मैं शीघ्र ही दो-एक दिन के लिए मद्रास आकर तुम लोगों से मिलने के बाद बंगलोर और फिर वहाँ से उटकमण्ड जाऊँगा। देखूँ ‘यदि’ म – महाराज मुझे भेज दें। ‘यदि’ इसलिए कह रहा हूँ कि मैं किसी द – राजा के वादे पर पूरा भरोसा नहीं रखता। वे राजपूत तो हैं नहीं – राजपूत अपने प्राण दे सकते हैं, किन्तु अपने वचन से कभी विमुख नहीं होते। अस्तु, ‘जब तक जीना तब तक सीखना’ – अनुभव ही जगत् में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।

“जिस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत् में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत् में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है।”1 तुम सबको मेरी शुभ कामना!

तुम्हारा
सच्चिदानन्द2


  1. ‘They will be done on earth as it is in heaven, for Thine is the glory and the kingdom for ever and ever’.
  2. इन दिनों स्वामी विवेकानन्द अपने को सच्चिदानन्द नाम से पुकारते थे

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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