स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (22 सितम्बर, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)

द्वारा कुमारी मूलर,
/gyan-yog-swami-vivekananda-hindi/एयरली लॉज, रिजवे गार्डन्स,
विम्बलडन, इंग्लैण्ड,
२२ सितम्बर, १८९६

प्रिय आलासिंगा,

मैक्समूलर द्वारा लिखित रामकृष्ण पर जो लेख मैंने तुम्हें भेजा था, आशा है मिला होगा। उन्होंने कहीं भी मेरे नाम की चर्चा नहीं की है – इसके लिए दुःखित मत होना। क्योंकि मुझसे परिचय होने के छः माह पूर्व उन्होंने यह लेख लिखा था और यदि उनका मूल वक्तव्य सही है तो फिर इससे क्या लेना-देना कि किसका नाम उन्होंने लिया और नहीं लिया। जर्मनी में प्रोफेसर डॉयसन के साथ मेरा समय आनन्दपूर्वक कटा। इसके बाद हम दोनों साथ ही लन्दन आये और हमारी मित्रता घनिष्ठ हो गयी है।

मैं शीघ्र ही उनके सम्बन्ध में एक लेख भेज रहा हूँ। सिर्फ एक प्रार्थना है, मेरे लेख के पहले पुराने ढंग का – ‘प्रिय महाशय’ मत जोड़ा करो। तुमने ‘राजयोग’ पुस्तक अभी तक देखी है या नहीं, इस वर्ष के लिए मैं एक प्रारूप भेजने की चेष्टा करूँगा। मैं तुम्हें ‘डेली न्यूज’ में प्रकाशित रूस के जार द्वारा लिखित यात्रा-पुस्तक की समीक्षा भेज रहा हूँ। जिस परिच्छेद में उन्होंने भारत को अध्यात्म और ज्ञान का देश कहा है – उसको तुम अपने पत्र में उद्धृत करके एक निबन्ध ‘इंडियन मिरर’ को भेज दो।

तुम ज्ञानयोग के व्याख्यान को खुशी से प्रकाशित कर सकते हो। और डॉक्टर नन्जुन्दा राव भी उसे अपने ‘प्रबुद्ध भारत’ के लिए ले सकते हैं किन्तु सिर्फ सरल और सहज भाषणों को। उन व्याख्यानों को एक बार सावधानी से देखकर उसमें पुनरावृत्ति और परस्पर विरोधी विचारों को निकाल देना है। मुझे पूरी आशा है कि लिखने के लिए अब अधिक समय मिलेगा। पूरी शक्ति के साथ कार्य में जुटे रहो।

सभी को प्यार –

तुम्हारा,
विवेकानन्द

पुनश्च – मैंने उद्धृत होने वाले परिच्छेद को रेखांकित कर दिया है। बाकी अंश किसी पत्रिका के लिए निरर्थक हैं।

मैं नहीं समझता कि अभी पत्रिका को मासिक बनाने से कोई लाभ होगा – जब तक कि तुमको यह विश्वास न हो जाय कि उसका कलेवर मोटा होगा। जैसा कि अभी है – कलेवर और सामग्री सभी मामूली है। अभी भी एक बहुत बड़ा क्षेत्र पड़ा हुआ है, जो अभी तक छुआ नहीं गया है। यथा – तुलसीदास, कबीर और नानक तथा दक्षिण भारत के सन्तों के जीवन और कृति के सम्बन्ध में लिखना। इसे विद्वत्तापूर्ण शैली तथा पूरी जानकारी के साथ लिखना होगा – ढीले-ढाले और अधकचरे ढंग से नही; असल में पत्र को आदर्श – वेदान्त के प्रचार के अलावा भारतीय अनुसंधान और ज्ञानपिपासाओं का – मुख-पत्र बनाना होगा। हाँ, धर्म ही इसका आधार होगा। तुम्हें अच्छे लेखकों से मिलकर अच्छी सामग्री के लिए आग्रह करना होगा तथा उनकी लेखनी से अच्छी रचना वसूल करनी होगी।

लगन के साथ कार्य में लगे रहो –

तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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