स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (6 अगस्त, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
स्विट्जरलैण्ड,
६ अगस्त, १८९६
प्रिय आलासिंगा,
तुम्हारे पत्र से ‘ब्रह्मवादिन्’ की आर्थिक दुर्दशा का समाचार विदित हुआ। लन्दन लौटने पर तुम्हें सहायता भेजने की चेष्टा करूँगा। तुम पत्रिका का स्तर नीचा न करना, उसको उन्नत रखना; अत्यन्त शीघ्र ही मैं तुम्हारी ऐसी सहायता कर सकूँगा कि इस बेहूदे अध्यापन-कार्य से तुम्हें मुक्ति मिल सके। डरने की कोई बात नहीं है वत्स, सभी महान् कार्य सम्पन्न होंगे। साहस से काम लो। ‘ब्रह्मवादिन्’ एक रत्न है, इसे नष्ट नहीं होना चाहिए। यह ठीक है कि ऐसी पत्रिकाओं को सदा निजी दान से ही जीवित रखना पड़ता है, हम भी वैसा ही करेंगे। कुछ महीने और जमे रहो।
मैक्समूलर महोदय का श्रीरामकृष्ण सम्बन्धी लेख ‘दि नाइन्टीन्थ सेन्चुरी’ में प्रकाशित हुआ है। मुझे मिलते ही मैं उसकी एक प्रतिलिपि तुम्हारे पास भेज दूँगा। वे मुझे अत्यन्त सुन्दर पत्र लिखते हैं। श्रीरामकृष्ण देव की एक बड़ी जीवनी लिखने के लिए वे सामग्री चाहते हैं। तुम कलकत्ते एक पत्र लिखकर सूचित कर दो कि जहाँ तक हो सके सामग्री एकत्र करके उन्हें भेज दी जाय।
अमेरिकी पत्र के लिए भेजा हुआ समाचार मुझे पहले ही मिल चुका है। भारत में उसे प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं है, समाचार-पत्र द्वारा इस प्रकार का प्रचार बहुत हो चुका है। इस विषय में खासकर मेरी अब कुछ भी रुचि नहीं है। मूर्खों को बकने दो, हमें तो अपना कार्य करना है। सत्य को कोई नहीं रोक सकता।
यह तो तुम्हें पता ही है कि मैं इस समय स्विट्जरलैण्ड में हूँ और बराबर घूम रहा हूँ। पढ़ने अथवा लिखने का कार्य कुछ भी नहीं कर पा रहा हूँ और करना भी उचित प्रतीत नहीं होता। लन्दन में मुझे एक महान् कार्य करना है, आगामी माह से उसे प्रारम्भ करना है। अगले जाड़ों में भारत लौटकर मैं वहाँ के कार्य को भी ठीक करने की कोशिश करूँगा।
सब लोगों को मेरा प्रेम! बहादुरों, कार्य करते रहो, पीछे न हटो – ‘नही’ मत कहो। कार्य करते रहो – तुम्हारी सहायता के लिए प्रभु तुम्हारे पीछे खड़े हैं। महाशक्ति तुम्हारे साथ विद्यमान है।
शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द
पुनश्च – डरने की कोई बात नहीं है, धन तथा अन्य वस्तुएँ शीघ्र ही प्राप्त होगी।