स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखित (9 अप्रैल, 1894)

(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)

न्यूयार्क
९ अप्रैल, १८९४

प्रिय आलासिंगा,

मुझे तुम्हारा आखिरी पत्र कुछ दिन पहले मिला। मुझे वहाँ इतना अधिक व्यस्त रहना पड़ता है, और प्रतिदिन इतने अधिक पत्र लिखने पड़ते हैं कि तुम्हारे लिये मुझसे हमेशा पत्र पाने की आशा करना ठीक नहीं। खैर, जो भी हो, यहाँ जो कुछ भी हो रहा है, उसे तुम्हें बतलाने का मैं भरसक प्रयत्न करता हूँ। धर्म-महासभा के सम्बन्ध में एक पुस्तक भेजने के लिए शिकागो में मैंने एक व्यक्ति को लिखा है। इस बीच तुम्हें मेरे दो छोटे व्याख्यान अवश्य ही मिले होंगे।

सेक्रेटरी साहब लिखते हैं कि मुझे भारत वापस आना चाहिए, क्योंकि मेरा क्षेत्र वहीं है। इसमें कोई सन्देह नहीं। किन्तु मेरे भाई, हम लोग एक ऐसा दीपक जलाने वाले हैं, जिसकी ज्योति से समस्त भारत में प्रकाश होगा। इसलिए हमें जल्दी नहीं करनी चाहिए। प्रभु की कृपा से सब काम हो जायेंगे। मैंने अमेरिका के बहुत से बड़े शहरों में व्याख्यान दिये हैं, एवं यहाँ के बेहद ज्यादा खर्चों को चुकता करने के बाद भी भारत वापस लौटने के लिए मेरे पास काफी धन है। मेरे यहाँ बहुत से मित्र हैं, जिनमें से कोई बहुत प्रभावशाली हैं। निस्सन्देह कट्टर पादरी मेरे विरुद्ध हैं और मुझसे लड़ना कठिन होगा जानकर हर प्रकार से वे मेरी निन्दा करते हैं मुझे बदनाम करने एवं मेरा विरोध करने में भी नहीं हिचकिचाते। और इसमें मजूमदार उनकी सहायता कर रहे हैं। वह द्वेष के मारे पागल हो गया लगता है। उसने उन लोगों से कहा है कि मैं बहुत बड़ा धोखेबाज और धूर्त हूँ। और इधर वह कलकत्ते में कहता फिर रहा है कि मैं अमेरिका में अत्यन्त पापपूर्ण एवं लम्पट जीवन व्यतीत कर रहा हूँ। प्रभु उसका कल्याण करें। मेरे भाई, बिना विरोध के कोई भी अच्छा काम नहीं हो सकता। जो अन्त तक प्रयत्न करते हैं, उन्हें ही सफलता प्राप्त होती है।… मेरा विश्वास है कि जब एक जाति, एक वेद तथा शान्ति एवं एकता होगी, तभी सत्ययुग (स्वर्णयुग) आयेगा। सत्ययुग का वह विचार ही भारत को पुनरुज्जीवित करेगा। विश्वास रखो। यदि तुम कर सको, तो एक काम करना है। क्या तुम मद्रास में रामनाड़ या अन्य किसी बड़े आदमी की अध्यक्षता में एक ऐसी सभा आयोजित कर सकते हो, जिसमें मेरे यहाँ हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व करने के प्रति पूर्णतया समर्थन एवं सन्तोष प्रकट किया जाय और फिर उस पारित प्रस्ताव को क्या यहाँ के ‘शिकागो हेरल्ड’, ‘इण्टर ओशन’ तथा ‘न्यूयार्क सन’ और डिट्रॉएट (मिशिगन) के ‘कमर्शियल एडवर्टाइजर’ को भेज सकते हो? शिकागो इलनॉइज में है। ‘न्यूयार्क सन’ के लिए किसी विशेष विवरण को आवश्यकता नहीं है। डिट्रॉएट मिशिगन राज्य-प्राप्त में है। उसकी प्रतियाँ डॉ. बरोज को, चेयरमैन, धर्म-महासभा, शिकागो के पते पर भेजो। मैं उनका मकान नं. भूल गया हूँ, किन्तु मुहल्ले का नाम इण्डियाना एवेन्यू है। उसकी एक प्रति श्रीमती जे. जे. बैग्ली, डिट्रॉएट, वाशिंगटन एवेन्यू के पते पर भी भेजो।

इस सभा को जितना अधिक बड़ा बना सकते हो, बनाओ। धर्म एवं देश के नाम पर सभी बड़े आदमियों से उसमें भाग लेने के लिए आग्रह करो। मैसूर के महाराजा तथा दीवान से इस सभा और उसके उद्देश्यों के समर्थन में पत्र प्राप्त करने की चेष्टा करो। ऐसा ही पत्र खेतड़ी से भी प्राप्त करो। मतलब यह कि यथासम्भव विशाल उत्साहपूर्ण जनसमूह को सभा में एकत्रित करने का प्रयत्न करो।

बच्चो, उठो काम में लग जाओ। यदि तुम यह कर सके, तो मुझे आशा है कि भविष्य में हम बहुत कुछ कर सकेंगे। प्रस्ताव कुछ इस प्रकार के आशय का होगा कि मद्रास की हिन्दू जनता मेरे यहाँ के कामों के प्रति अपना पूर्ण सन्तोष व्यक्त करती है, आदि।

यदि सम्भव हो, तो यह सब करो। कोई बहुत ज्यादा काम नहीं है। इसके अतिरिक्त देश के सभी भागों में समर्थन-पत्र प्राप्त करो और उनकी प्रतिलिपि अमेरिका के पत्रों को भेज दो। इसमें जितनी जल्दी हो, उतना ही अच्छा। इसका बहुत व्यापक परिणाम होगा, मेरे भाई। ब्राह्म समाज के लोग यहाँ मेरे विरुद्ध हर तरह की बकवास कर रहे हैं। जितना शीघ्र हो सके, हमें उनका मुँह बन्द करना होगा। चिरकाल तक सनातन धर्म का डंका बजेगा। सभी झूठों एवं धूर्तों का नाश हो! उठो, उठो, मेरे बच्चो! हमारी विजय निश्चित है।

जहाँ तक मेरे पत्रों को प्रकाशित करने का प्रश्न है, उनके प्रकाश करने योग्य अंशों को हमारे मित्रों के लिए तब तक छापा जा सकता है, जब तक मैं वापस न आ जाऊँ। जब हम एक बार काम आरम्भ कर लेंगे, तब बड़ी भारी धूम मचेगी, परन्तु मैं काम किये बिना बात नहीं करना चाहता। मैं ठीक नहीं जानता, लेकिन गिरीशचन्द्र घोष और श्री मित्र मेरे गुरुदेव के सभी प्रेमियों को एकत्र कर ऐसा ही काम कलकत्ते में भी कर सकते हैं। अगर वे ऐसा कर सकें, तो और भी अच्छा है। यदि वे कर सकें, तो उनसे भी ऐसा ही एक प्रस्ताव पास करने को कहो। कलकत्ता में ऐसे हजारों हैं, जो हमारे आन्दोलन के प्रति सहानुभूति रखते हैं। खैर, जो भी हो, मुझे उनसे अधिक तुम पर विश्वास है।

अब और कुछ नहीं लिखना है।

सभी मित्रों से मेरा अभिवादन कहना। उनके लिए मैं सतत प्रार्थना करता रहता हूँ।

साशीर्वाद तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version