स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री बलराम बसु को लिखित (30 जनवरी, 1890)

(स्वामी विवेकानंद का श्री बलराम बसु को लिखा गया पत्र)
श्रीरामकृष्णो जयति

गाजीपुर,
३० जनवरी, १८९०

पूज्यपाद,

मैं अब गाजीपुर में सतीश बाबू के यहाँ ठहरा हूँ। जिन स्थानों को देखने का मुझे मौका मिला, उनमें यह स्थान स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। वैद्यनाथ का जल अत्यन्त खराब है, हजम नहीं होता। इलाहाबाद अत्यन्त घनी बस्ती है – वाराणसी में जब तक रहा, हर समय ज्वर बना रहा, वहाँ इतना मलेरिया है।

गाजीपुर में, खासकर जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभदायक है। पवहारी बाबा का निवास-स्थान देख आया हूँ। चारों तरफ ऊँची दीवालें हैं, देखने में साहबों का बँगला जैसा है, अन्दर बगीचा है, बड़े बड़े कमरे तथा चिमनी इत्यादि हैं। किसी को वे भीतर जाने नहीं देते, जब कभी इच्छा होती है, तब स्वयं ही दरवाजे पर आकर भीतर से ही बातचीत करते हैं। एक दिन वहाँ जाकर बैठा बैठा सर्दी खाकर लौटा था। रविवार को वाराणसी जाना है। इस बीच में यदि उनसे भेंट हुई, तो हुई, नहीं तो न सही। प्रमदा बाबू के बगीचे के बारे में वाराणसी से निश्चय कर लिखूँगा। काली भट्टाचार्य यदि आना ही चाहे, तो रविवार को मेरे वहाँ जाने के बाद आये – न आना ही अच्छा है। वाराणसी में दो-चार दिन रहकर शीघ्र ही मुझे हृषीकेश जाना है – प्रमदा बाबू के साथ भी जा सकता हूँ। आप लोग तथा तुलसीराम आदि मेरा यथायोग्य नमस्कारादि ग्रहण करें तथा फकीर, राम, कृष्णमयी आदि से मेरा आशीर्वाद कहें।

आपका,
नरेन्द्र

पुनश्च – मेरे मतानुसार आप यदि कुछ दिन गाजीपुर में रहें, तो अच्छा है। आपके रहने के लिए बँगले की व्यवस्था सतीश कर सकेगा और गगनचन्द्र राय नामक और एक व्यक्ति हैं, जो आबकारी दफ्तर के बड़े बाबू हैं, अत्यन्त ही सज्जन, परोपकारी तथा मिलनसार हैं – ये लोग सब कुछ व्यवस्था कर देंगे। यहाँ पर मकान का किराया १५-२० रुपये है; चावल महँगा है, दूध रुपये में १६-२० सेर है, अन्यान्य वस्तुएँ सस्ती हैं। इन लोगों की देख-रेख में आपको किसी प्रकार के कष्ट की आशंका नहीं है, परन्तु कुछ अधिक खर्च अवश्य होगा। ४०-५० रुपये से अधिक खर्च पड़ेगा। वाराणसी अत्यन्त मलेरियाग्रस्त शहर है।

प्रमदा बाबू के बगीचे में मैं कभी नहीं रहा हूँ – वे कभी मुझे अपने से पृथक् नहीं होने देते। बगीचा वास्तव में अत्यन्त सुन्दर, सुसज्जित, विशाल तथा खुले स्थान में है। अबकी बार वहाँ कुछ दिन ठहरकर तथा भली भाँति देख-भालकर श्रीमान को सब समाचार लिखूँगा। इति।

नरेन्द्र

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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