स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित (14 जुलाई, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)
पोर्ट सईद,
१४ जुलाई, १८९९
प्रिय स्टर्डी,
अभी-अभी तुम्हारा पत्र ठीक-ठीक आ पहुँचा। पेरिस के एम. नोबल का भी एक पत्र मिला है। कुमारी नोबल को अमेरिका से कई पत्र मिले हैं।
एम. नोबल ने लिखा है कि उनको दीर्घकाल तक बाहर रहना होगा; अतः उन्होंने मुझे लन्दन से पेरिस में अपने यहाँ आने की तिथि को पीछे हटा देने के लिए लिखा है। तुम्हें यह निश्चित रूप से पता है कि इस समय लन्दन में मेरे मित्रों में से अधिकांश लोग नहीं हैं; कुमारी मैक्लिऑड मुझे जाने के लिए बहुत ही जोर दे रही हैं। वर्तमान परिस्थिति में इंग्लैण्ड में रहना मुझे युक्तियुक्त प्रतीत नहीं हो रहा है। साथ ही मेरी आयु भी समाप्त हो रही है – खासकर इस बात को सत्य मानकर ही मुझे चलना होगा। मेरा वक्तव्य यह है कि यदि हमें अमेरिका में वस्तुतः कुछ करना हो, तो अपनी सारी बिखरी हुई शक्ति केन्द्रित करने का सबसे अच्छा अवसर यही है – अगर हम उन्हें यथार्थ रूप से सुनियन्त्रित न कर सकें तो भी। तब कुछ महीनों के बाद मुझे इंग्लैण्ड लौटने का अवसर प्राप्त होगा एवं भारतवर्ष लौटने के पूर्व तक दत्तचित्त होकर मैं कार्य कर सकूँगा।
मैं समझता हूँ कि अमेरिका के कार्यों को समेटने के लिए तुम्हारा आना नितान्त आवश्यक है। अतः यदि सम्भव हो, तो मेरे साथ तुम्हारा आना उचित है। मेरे साथ तुरीयानन्द जी हैं। सारदानन्द का भाई बोस्टन जा रहा है।… यदि तुम अमेरिका न भी आ सको, तो भी मेरा जाना उचित है – तुम्हारी क्या राय है?
तुम्हारा,
विवेकानन्द