स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखित (23 अगस्त, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का श्री ई. टी. स्टर्डी को लिखा गया पत्र)

लूसर्न,
कल्याणवरेषु,
२३ अगस्त, १८९६

आज भारत से अभेदानन्द लिखित एक पत्र मुझे प्राप्त हुआ, बहुत सम्भव है कि वह ११ अगस्त के बी.आय.एस.एन.-‘एस.एस.मोम्बासा’ द्वारा रवाना हो चुका है। इससे पहले का कोई जहाज उसे नहीं मिला, नहीं तो वह पहले रवाना होता। बहुत सम्भव है कि उसे ‘मोम्बासा’ में जगह मिल जाए। ‘मोम्बासा’ लन्दन में १५ सितम्बर के आसपास पहुँचेगा। तुम्हें पहले ही मालूम है कि डायसन के पास मेरे जाने का दिन कुमारी मूलर ने बदलकर १९ सितम्बर कर दिया है अतः अभेदानन्द की अगवानी के लिए मैं लन्दन में नहीं रह पाऊँगा। वह गर्म पोशाक के बिना ही आ रहा है, आशंका है कि उस समय तक इंग्लैण्ड में ठण्ड शुरु हो जाएगी तथा उसे कम से कम कुछ अन्तर्वस्त्रों तथा एक ओवरकोट की आवश्यकता पड़ेगी। तुम इन सभी वस्तुओं के बारे में मुझसे कहीं अच्छा जानते हो। अतः कृपापूर्वक इस ‘मोम्बासा’ पर नजर रखना। मुझे उससे एक और पत्र की आशा है।

वस्तुतः मैं अत्याधिक सर्दी-जुकाम से पिड़ित हूँ। आशा है राजा से मोहिन को मिलने वाला धन तुम्हारे पते पर आ गया होगा। यदि ऐसा है तो जो धन मैंने उसे दिया है उसे मैं वापिस नहीं चाहता, तुम यह सारा धन उसे दे सकते हो।

गुडविन तथा सारदानन्द के मुझे कुछ पत्र मिले थे। वे ठीक हैं। एक पत्र श्रीमती बुल का भी मिला है। जिसमें उसनें खेद व्यक्त किया है कि तुम और मैं पत्राचार द्वारा कैम्ब्रिज में उनके द्वारा बनाई गई समिति के सदस्य नहीं हो सके। मुझे पक्का याद है कि मैंने उसे लिखा था कि इस सदस्यता में तुम्हारी तथा मेरी सम्मति सम्भव नहीं है। अभी तक मैं एक पंक्ति भी नहीं लिख पाया हूँ। सारा समय पहाड़ और घाटी की चढ़ाई-उतराई में ही बीतता है, स्वाध्याय के लिए क्षणभर समय नहीं मिलता। कुछ दिनों में हम फिर आगे की यात्रा प्रारंभ करेंगे। इसके बाद जब भी मोहिन और फॉक्स से भेंट हो तो कृपया उन्हें मेरा प्यार कहना। अपने सभी मित्रों को प्रेमसहित,

सदा आपका,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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