स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखित (28 अप्रैल, 1893)

(स्वामी विवेकानंद का श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखा गया पत्र)

खेतड़ी,
२८ अप्रैल, १८९३

प्रिय दीवानजी साहब,

यहाँ आते समय मैं आपके स्थान नदियाद जाकर अपना वचन पूरा करना चाहता था। लेकिन कुछ परिस्थितियों के कारण ऐसा नहीं कर पाया। सबसे प्रधान बात यह थी कि आप वहाँ थे नहीं; और हैमलैट की भूमिका को छोड़कर हैमलेट नाटक का अभिनय एक हास्यास्पद बात होती, तथा मुझे यह निश्चित रूप से मालूम था कि आप कुछ ही दिनों में नदियाद आनेवाले हैं, और चूँकि मैं भी शीघ्र ही, यही करीब २० दिन में, बम्बई जानेवाला हूँ, मैंने तब तक के लिए अपनी यात्रा को स्थगित कर देना उचित समझा।

यहाँ खेतड़ी के राजा साहब मुझसे मिलने के लिए बहुत ही उत्सुक थे और उन्होंने अपने वैयक्तिक सचिव को मद्रास भेजा था, इसलिए मुझे खेतड़ी आना पड़ा। लेकिन यहाँ गर्मी असह्म है, अतः मैं शीघ्र ही भागनेवाला हूँ।

बहरहाल, दक्षिण के प्रायः सभी राजाओं से परिचित हो गया हूँ और कई स्थानों में मैंने विचित्र बातें देखीं, जिनके विषय में अगली बार मिलने पर मैं विस्तारपूर्वक बताऊँगा। मैं अपने प्रति आपके स्नेह को जानता हूँ और आशा है, आप मेरे वहाँ न पहुँचने के लिए क्षमा करेंगे। फिर भी, कुछ ही दिनों मैं आपके यहाँ आ रहा हूँ।

एक और बात, क्या इस समय जूनागढ़ में आपके यहाँ सिंह के बच्चे हैं। क्या आप मेरे राजा साहब के लिए एक दे सकते हैं? वे राजपूताना के कुछ पशु, यदि आप चाहें, विनिमय के रूप में दे सकते हैं।

रतिलालभाई से मैं ट्रेन में मिला था। वे पूर्ववत् अच्छे दयालु सज्जन हैं। प्रिय दीवान जी साहब, मैं आपके लिए इससे अधिक और क्या कामना कर सकता हूँ कि आपके उस सु-अर्जित, सर्वप्रशंसित, और सर्वसमादृत जीवन के उत्तरार्द्ध में, जो सदा ही सतत् पवित्र, शुभ एवं दयामय प्रभु के पुत्र-पुत्रियों की सेवा में रत रहा है, प्रभु ही आपके सर्वस्व हों। एवमस्तु।

सस्नेह आपका,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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