स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखित (सितम्बर, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का श्री हरिदास बिहारीदास देसाई को लिखा गया पत्र)
शिकागो,
सितम्बर, १८९४
प्रिय दीवान जी साहब,
बहुत पहले ही आपका कृपापत्र मिला था, लेकिन चूँकि मेरे पास कुछ विशेष लिखने को नहीं था, मैंने उत्तर लिखने में देर की।
जी. डब्ल्यू. हेल के प्रति आपका कृपापूर्ण वक्तव्य बहुत ही आनन्द देने वाला साबित हुआ, क्योंकि उनके प्रति मैं इतना भर ही ऋणी था। इस समय मैं पूरे इस देश की यात्रा कर रहा हूँ एवं सभी चीजों को देख रहा हूँ। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच गया हूँ कि संसार में केवल एक ही देश है, जो धर्म को समझ सकता है – वह है भारत; हिन्दू अपनी सम्पूर्ण बुराइयों के बावजूद नीति एवं अध्यात्म में दूसरे राष्ट्रों से बहुत ऊँचे हैं, एवं उसके निःस्वार्थी सुपुत्रों की समुचित सावधानी, प्रयास एवं संघर्ष के द्वारा पाश्चात्य देशों के वीरोचित तत्त्वों को हिन्दुओं के शान्त गुणों के साथ मिलाते हुए एक ऐसे मानव-समुदाय की सृष्टि की जा सकती है, जो इस संसार में अब तक पैदा हुई किसी भी जाति से यह समुदाय कई गुना महान् होगा।
मुझे पता नहीं कि मैं कब लौटूँगा, लेकिन इस देश की अधिकांश चीजों को मैंने देख लिया, अतः शीघ्र ही यूरोप और फिर भारत चला जाऊँगा।
आपके लिए एवं आपके भाइयों के लिए सर्वोत्तम कृतज्ञता एवं प्रेम के साथ,
आपका चिर विश्वस्त,
विवेकानन्द