स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (10 मई, 1890)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
रामकृष्णो जयति
वराहनगर,
१० मई, १८९०
पूज्यपाद,
अनेक व्यवधानों तथा ज्वर फिर आने लगने के कारण मैं आपको नहीं लिख सका। अभेदानन्द के पत्र से यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप अच्छे हैं। शायद गंगाधर अब वाराणसी पहुँच गये हों। यमराज यहाँ हमारे बहुत से मित्रों और स्वजनों के लिए मुँह फैलाये हुए हैं। इसलिए मैं बहुत उद्विग्न हूँ। सम्भवतः नेपाल से मेरे लिए कोई पत्र नहीं आया। नहीं मालूम, कब और कैसे विश्वनाथ (काशी के प्रभु) मुझे कुछ शांति प्रदान करने की कृपा करेंगे? जैसे ही गर्मी कुछ कम हुई, मैं इस स्थान से चल दूँगा, पर अब भी मुझे नहीं सूझता कि मुझे कहाँ जाना है। मेरे लिए विश्वनाथजी से अवश्य प्रार्थना कीजिए कि वे मुझे शक्ति दें। आप भक्त हैं और प्रभु के शब्दों – ‘जो मेरे भक्तों के भक्त हैं, वे वास्तव में मेरे भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं,’ – को याद करके मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ।
आपका,
नरेन्द्र