स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (13 दिसम्बर, 1889)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ईश्वरो जयति
वराहनगर, कलकत्ता,
१३ दिसम्बर, १८८९
पूज्यपाद,
आपके पत्र से सब समाचार मिले। उसके बाद राखाल का पत्र मिला, जिससे आपकी और उसकी भेंट का हाल मालूम हुआ। आपकी लिखी हुई पुस्तिका मिली। जब से यूरोप में ‘ऊर्जा-संधारण’ (Conservation of Energy) के सिद्धान्त का आविष्कार हुआ है, तब से वहाँ एक प्रकार का वैज्ञानिक अद्वैतवाद फैल रहा है।
किन्तु वह सब परिणामवाद है। यह अच्छा हुआ कि आपने उसमें और शंकराचार्य के विवर्तवाद में भेद स्पष्ट कर दिया है। जर्मन अतीन्द्रियवादियों1 (Transcendentalists) के सम्बन्ध में स्पेन्सर की विडम्बना का जो उद्धरण आपने दिया, वह मुझे जँचा नहीं। स्पेन्सर ने स्वयं उनसे बहुत कुछ सीखा है। आपका विरोधी ‘गफ’ (Gough) अपने ‘हेगेल’ को समझा सका है या नहीं, इसमें सन्देह है। जो हो, आपका उत्तर काफी तीक्ष्ण एवं अकाट्य है।
आपका,
नरेन्द्रनाथ
- इनके मतानुसार इन्द्रियजन्य-ज्ञान-निरपेक्ष स्वतःसिद्ध और भी एक प्रकार का ज्ञान है।