स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (19 फरवरी, 1890)

(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ईश्वरो जयति

गाजीपुर,
१९ फरवरी, १८९०

पूज्यपाद,

मैंने गंगाधर को चिट्ठी लिखी थी कि वह अपना परिभ्रमण स्थगित कर किसी जगह ठहर जाय और तिब्बत में जिन विभिन्न प्रकार के साधुओं से भेंट हुई हो, उनके रीति-रिवाज, रहन-सहन इत्यादि के सम्बन्ध में विशेष रूप से मुझे लिख भेजे। उत्तर में उसने मुझे जो लिखा, वह मैं आपके पास भेज रहा हूँ।

काली को हृषीकेश में बार बार ज्वर हो आता है, मैंने उसे यहाँ से एक तार भेजा है। उसके जबाव में यदि उसने मुझे बुलाया, तो मुझे यहाँ से सीधे हृषीकेश जाना ही होगा, नहीं तो मैं दो-एक दिन में आपके यहाँ आ जाऊँगा। मेरे इस सब मायाजाल पर आपको हँसी आती होगी, और बात भी सचमुच ऐसी ही है। एक बन्धन लोहे की जंजीरों का होता है, दूसरा सोने की जंजीरों का। दूसरे बन्धन से बहुत कुछ कल्याण होता है और इष्ट-सिद्धि के बाद वह अपने आप खुल जाता है। मेरे गुरुदेव की सन्तान मेरी सेवा के पात्र हैं। यहीं पर मै अनुभव करता हूँ कि मेरे लिए कुछ कर्तव्य बाकी है। सम्भवतः काली को इलाहाबाद, अथवा जहाँ सुविधा होगी, वहाँ भेजूँगा। आपके चरणों के सम्मुख मेरे शत शत अपराध उपस्थित हैं – पुत्रस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् । किमधिकमिति।

आपका,
नरेन्द्र

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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