स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (19 नवंबर, 1888)

(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ॐ नमो भगवते रामकृष्णाय

वराहनगर मठ,
१९ नवम्बर, १८८८

पूज्यपाद महाशय,

आपकी भेजी हुई दोनों पुस्तके मुझे मिलीं। आपका प्रेमपूर्ण पत्र पढ़कर मैं हर्ष से ओतप्रोत हो गया। वह आपके हृदय की विशालता तथा उदारता का प्रतीक है। महाशय, मुझ जैसे भिक्षावृत्तिधारी संन्यासी पर जो आप इतनी महती कृपा करते हैं, यह निःसन्देह मेरे पूर्व जन्मों के पुण्य का फल है।

आपने ‘वेदान्त’ का उपहार भेजकर न केवल मुझे, वरन् श्रीरामकृष्ण के समस्त संन्यासी-मण्डल को आजीवन ऋणी कर दिया है। वे सब आपको सादर प्रणाम करते हैं। मैंने आपसे जो पाणिनि व्याकरण की प्रति मँगायी है, वह केवल अपने लिए ही नहीं है; वास्तव में इस मठ में संस्कृत धर्म ग्रन्थों का खूब अध्ययन हो रहा है। वेदों के लिए तो यहाँ तक कहा जा सकता है कि उनका अध्ययन बंगाल में बिल्कुल छूट गया है।

इस मठ में बहुत से लोग संस्कृत जानते हैं और उनकी इच्छा है कि वे वेदों के संहितादि भागों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लें। उनकी राय है कि जो काम किया जाय, उसे पूरी तौर से किया जाय। मेरा विश्वास है कि पाणिनि व्याकरण पर पूर्ण अधिकार प्राप्त किये बिना वेदों की भाषा में पारंगत होना असम्भव है और एकमात्र पाणिनि व्याकरण ही इस कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इसीलिए इसकी एक प्रति की आवश्यकता हुई है। मुग्धबोध व्याकरण, जो हम लोगों ने बाल्य काल में पढ़ा था, लघुकौमुदी से कई अंशों में अच्छा है। आप स्वयं एक बड़े विद्वान् हैं, अतएव हमारे लिए इस विषय में निर्णय अच्छी तरह कर सकते हैं। अतः यदि आप समझते हैं कि (पाणिनिकृत) अष्टाध्यायी हमारे लिए सबसे अधिक उपयुक्त है, तो उसे भेजकर हमें आप जीवन भर के लिए अनुगृहीत करेंगे। इस विषय में मैं यह कह दूँ कि आप अपनी सुविधा और इच्छा का अवश्य स्मरण रखें। इस मठ में अध्यवसायी, योग्य और कुशाग्रबुद्धिवाले मनुष्यों की कमी नहीं है। मुझे आशा है कि गुरुकृपा से वे अल्प काल में पाणिनीय पद्धति में पारंगत होकर बंगाल में वेदों का पुनरुद्धार करने में सफल होंगे। मैं आपकी सेवा में अपने पूज्य गुरुदेव के दो फोटो और उनके कुछ उपदेशों के दो भाग, जिन्हें किसी सज्जन ने संकलित और प्रकाशित किया है, भेजता हूँ। इन उपदेशों में आपको घरेलू शैली मिलेगी। आशा है, आप इन्हें स्वीकार करेंगे। मेरा स्वास्थ्य अब काफी ठीक है। आशा है, प्रभु-कृपा से मैं दो-तीन महीनों में आपसे मिल सकूँगा।

आपका,
नरेन्द्रनाथ

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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