स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (3 दिसम्बर, 1889)
(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
बागबाजार, कलकत्ता,
३ दिसम्बर, १८८९
प्रिय महोदय,
बहुत दिन से आपका समाचार नहीं मिला। आशा है, आपका मन और शरीर अच्छा है। मेरे दो गुरुभाई बनारस के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। एक का नाम राखाल है, दूसरे का सुबोध। प्रथम मेरे गुरु का प्रिय पात्र था और अधिकतर उनके साथ रहता था। कृपया उनके नगर-निवास के समय, यदि आप इसे सुविधाजनक समझें तो, उनके लिए किसी सत्र में सिफारिश कर दीजियेगा। उनसे आप मेरा सब समाचार सुनेंगे। असंख्य प्रणाम के साथ –
आपका,
नरेन्द्रनाथ
पुनश्च – गंगाधर अब कैलाश जा रहा है। तिब्बत वालों ने विदेशियों का जासूस समझकर उसे समाप्त कर डालना चाहा। संयोगवश कुछ लामाओं ने उसे कृपापूर्वक मुक्त कर दिया। यह समाचार हमें तिब्बत जाने वाले एक व्यापारी से मिला। गंगाधर को बिना ल्हासा देखे चैन नहीं है। लाभ यह है कि उसकी शारीरिक सहनशक्ति बहुत बढ़ गयी है – एक रात्रि उसने नंगे बदन बर्फ के बिछौने पर बितायी, और वह भी बिना किसी विशेष कठिनाई के। इति।
आपका,
नरेन्द्र