स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री प्रमदादास मित्र को लिखित (4 फरवरी, 1889)

(स्वामी विवेकानंद का श्री प्रमदादास मित्र को लिखा गया पत्र)
ईश्वरो जयति

वराहनगर, कलकत्ता,
४ फरवरी, १८८९

पूज्य महाशय,

किसी कारण से आज मैं मानसिक उद्विग्नता और ऐंठन का अनुभव कर रहा था, उसी समय आपका पत्र मिला, जिसमें आपने मुझे वाराणसी के स्वर्गोपम नगर में निमंत्रित किया है। मैं इसे श्री विश्वेश्वर का आदेश मानकर स्वीकार कर रहा हूँ।

इस समय मैं अपने गुरुदेव की जन्मभूमि के दर्शन के लिए रवाना हो रहा हूँ और वहाँ कुछ दिन प्रवास करने के बाद मैं आपकी सेवा में उपस्थित हूँगा। जो वाराणसी और विश्वनाथ के दर्शन से द्रवित नहीं होता, वह पाषाण-हृदय है! मेरा स्वास्थ्य अब बहुत सुधर गया है। ज्ञानानन्द से मेरा नमस्कार कहिए। जितना शीघ्र हो सकेगा, मैं वहाँ पहुँचूँगा। यह सब अन्ततोगत्वा विश्वेश्वर की इच्छा पर निर्भर है। किमधिकमिति । शेष मिलने पर।

आपका,
नरेन्द्रनाथ

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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