स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री स्वामी अखण्डानन्द को लिखित (मार्च, 1890)

(स्वामी विवेकानंद का श्री स्वामी अखण्डानन्द को लिखा गया पत्र)
ॐ नमो भगवते रामकृष्णाय

गाजीपुर,
मार्च, १८९०

प्राणधिकेषु,

कल तुम्हारा पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। मैं इस समय यहाँ के अद्भुत योगी और भक्त पवहारीजी के पास ठहरा हूँ। वे अपने कमरे से कभी बाहर नहीं आते। दरवाजे के भीतर से ही बातचीत करते हैं। कमरे के अन्दर एक गुफा में वे रहते हैं। कहा जाता है कि वे महीनों समाधिस्थ रहते हैं। उनमें अद्भुत तितिक्षा है। अपना बंग देश भक्ति और ज्ञानप्रधान है; वहाँ योग की कभी चर्चा तक नहीं होती। जो कुछ है, वह केवल विचित्र श्वास-साधन इत्यादि हठयोग – वह तो केवल एक प्रकार का व्यायाम है। इसीलिए मैं इस अद्भुत राजयोगी के पास ठहरा हूँ। इन्होंने कुछ आशा भी दिलायी है। यहाँ एक सज्जन हैं, जिनके छोटे बगीचे में एक सुन्दर बँगला है। मैं वहाँ ठहरना चाहता हूँ। वह बगीचा बाबाजी के निवास-स्थान से निकट है। वहाँ बाबाजी का एक भाई रहकर साधुओं की सेवा करता रहता है। मैं उसी स्थान पर भिक्षा लिया करूँगा। यह लीला अन्त तक देखने के लिए मैंने पहाड़ों पर जाने का अपना इरादा अभी स्थगित कर दिया है। दो महीने से मुझे कमर में बात-पीड़ा हो रही है, जिसके कारण पहाड़ों पर चढ़ना असम्भव होगा। अतएव यहाँ रुककर देखूँ कि बाबाजी से क्या मिलता है।

मेरा मूलमंत्र है कि जहाँ जो कुछ अच्छा मिले, सीखना चाहिए। इसके कारण वराहनगर में मेरे बहुत से गुरुभाई सोचते हैं कि मेरी गुरु-भक्ति कम हो जायेगी। इन्हें मैं पागलों तथा कट्टरपंथियों के विचार समझता हूँ, क्योंकि जितने गुरु हैं, वे सब एक उसी जगद्गुरु के अंश तथा आभासस्वरूप हैं। यदि तुम गाजीपुर आओ, तो गोराबाजार में सतीश बाबू या गगन बाबू से मेरा ठिकाना पूछ लो। अथवा पवहारी बाबा को तो यहाँ का बच्चा-बच्चा जानता है। उनके आश्रम पर जाकर पूछ लेना कि परमहंसजी कहाँ रहते हैं। लोग तुम्हें मेरा स्थान बता देंगे। मुगलसराय के पास दिलदारनगर नामक एक स्टेशन है, जहाँ से तुमको ब्रांच रेलवे द्वारा तारीघाट तक जाना होगा। तारीघाट से गंगा पार करके तुम गाजीपुर पहुँचोगे। अभी तो मैं कुछ दिन गाजीपुर ठहरूँगा; देखता हूँ, बाबाजी क्या करते हैं। यदि तुम आ गये, तो हम दोनों साथ साथ बँगले में कुछ दिन रहेंगे और फिर पहाड़ों पर या किसी दूसरी जगह, जहाँ इरादा होगा, चलेंगे। वराहनगर में किसी को इस बात की सूचना न देना कि मैं गाजीपुर में ठहरा हूँ। साशीर्वाद,

सतत् मंगलाकांक्षी,
नरेन्द्र

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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