स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (2 मई, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)

२ मई, १९००

प्रिय निवेदिता,

मैं अत्यन्त अस्वस्थ हो चुका था – महीने भर तक कठोर परिश्रम करने के फलस्वरूप पुनः रोग का आक्रमण हुआ था। अस्तु, अब मैं इतना समझ सका हूँ कि

मेरे हृत्पिण्ड अथवा प्लीहा में कोई रोग नहीं है, केवल अधिक परिश्रम के कारण स्नायु क्लान्त हो चुके हैं। अतः आज मैं कुछ दिन के लिए एक गाँव में जा रहा हूँ और जब तक मेरा शरीर पूर्ण स्वस्थ न हो जायगा, तब तक मैं वही रहूँगा; आशा है कि शीघ्र ही शरीर ठीक हो जायगा।

इस बीच प्लेग के समाचारादि से पूर्ण किसी भारतीय का कोई पत्र मैं पढ़ना नहीं चाहता हूँ। मुझसे सम्बन्धित सारी डाक ‘मेरी’ के पास भेजी जा रही है। मैं जब तक वापस नहीं आता हूँ, तब तक के लिए मेरे पत्रादि उसके पास अथवा उसके चले जाने पर तुम अपने पास रखना। मैं सारी दुश्चिन्ताओं से मुक्त रहना चाहता हूँ। जय माँ!

श्रीमती सी० पी० हंटिंग्टन नामक एक धनी महिला ने मेरी कुछ सहायता की थी; वे तुमसे मिलना चाहती हैं और तुम्हें कुछ सहायता देना चाहती हैं। १ जून के अन्दर ही वे न्यूयार्क आयेंगी। उनसे मिले बिना तुम न चली जाना। मेरे अत्यन्त शीघ्र लौटने की कोई सम्भावना नहीं है; अतः उनके नाम तुम्हारा एक परिचय-पत्र मैं भेज दूँगा।

‘मेरी’ से मेरा स्नेह कहना। मैं दो-चार दिन के अन्दर ही रवाना हो रहा हूँ।

सतत शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द

पुनश्च – श्रीमती एम० सी० एडम्स के साथ तुम्हें परिचित कराने के लिए एक पत्र मैं इसके साथ भेज रहा हूँ; वे जज एडम्स की पत्नी हैं। उनके साथ शीघ्र ही भेंट करना। उसके फलस्वरूप सम्भवतः बहुत कुछ कार्य हो सकेगा। वे अत्यन्त प्रख्यात महिला हैं – पूछताछ कर उनका पता लगा लेना।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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