स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (26 मई, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)

सैन फ़्रांसिस्को,
२६ मई, १९००

प्रिय निवेदिता,

मेरा अनन्त आशीर्वाद जानना तथा किंचिन्मात्र भी निराश न होना। वाह गुरू, वाह गुरू! क्षत्रिय-रूधिर में तुम्हारा जन्म है। हम लोग जो गैरिक वसन धारण करते हैं, वह तो समर-क्षेत्र में मृत्यु का ही साज है। व्रत-पालन में जीवन को उत्सर्ग करना ही हमारा आदर्श है, न कि सिद्धिप्राप्ति की व्यग्रता। वाह गरू!

कुटिल दुर्भाग्य के आवरण कृष्णवर्ण तथा दुर्भेद्य हैं! किन्तु मैं ही सर्वमय प्रभु हूँ। जिस समय मैं ऊपर की ओर अपने हाथों को उठाता हूँ – तत्क्षण ही वे अन्तर्हित हो जाते हैं। इन सारी वस्तुओं का कोई ख़ास अर्थ नहीं होता है एवं एकमात्र भय ही इनका जनक है। त्रास का भी मैं त्रासस्वरूप हूँ, रूद्र का भी मैं रूद्र हूँ। मैं ही अभीः, अद्वितीय तथा एक हूँ। अदृष्ट का मैं नियामक हूँ, मैं ही कपालमोचन हूँ। श्री वाह गुरू! शक्तिशालिनी बनो। कांचन अथवा और किसी भी वस्तु के अधीन न होना; ऐसा होने पर ही सिद्धि हमारे लिए सुनिश्चित है।

तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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