स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (4 मार्च, 1900)

(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)

सैन फ़्रांसिस्को,
४ मार्च, १९००

प्रिय निवेदिता,

कर्म में मेरी आकांक्षा नहीं हैं – विश्राम एवं शान्ति के लिए मैं लालायित हूँ। स्थान और काल का तत्त्व मुझसे यद्यपि छिपा हुआ नहीं है, फिर भी मेरा भाग्य तथा कर्मफल मुझे निरन्तर कर्म की ही ओर ले जा रहा है! हम मानो गायों के झुण्ड की तरह कसाईख़ाने की ओर बढ़ रहे हैं; और जैसे बेंत के इशारे पर चलनेवाली गाय रास्ते के किनारे पर लगी हुई घास से एकाध बार अपना मुँह भर लेती है, हमारी दशा भी ठीक उसी प्रकार की है। हमारे कर्म अथवा भय का यही स्वरूप है, – भय ही दुःख, रोग आदि का मूल है। विभ्रान्त तथा भयभीत होकर ही हम दूसरों को हानि पहुँचाते हैं। चोट पहुँचाने से डरकर हम और अधिक चोट करते हैं। पाप से बचने के लिए विशेष आग्रहशील होकर हम पाप के ही मुँह में जा गिरते हैं।

हम अपने चारों ओर न जाने कितना व्यर्थ कूड़े का ढेर लगाते हैं। इससे हमारा कोई लाभ नहीं होता; किन्तु जिस वस्तु को हम त्यागना चाहते हैं, उसकी ओर – उस दुःख की ओर ही वह हमें ले जाता है।…

अहा, यदि एकदम निडर, साहसी तथा बेपरवाह बनना सम्भव होता।…

तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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