स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी अभेदानन्द को लिखित (अक्टूबर, 1895)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी अभेदानन्द को लिखा गया पत्र)

द्वारा ई. टी. स्टर्डी,
हाई व्यू,केवरशम,
रीडिंग, इंग्लैण्ड,
अक्टूबर, १८९५

प्रिय काली,

तुम्हें मेरा पिछला पत्र मिला होगा। इन दिनों सभी चिट्टियाँ ऊपर के पते पर भेजो। श्री स्टर्डी तारक दादा से परिचित हैं। वह मुझे अपने निवास पर ले आया है और हम दोनों इंग्लैण्ड में एक उत्तेजना पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस वर्ष पुनः नवम्बर में अमेरिका के लिए प्रस्थान करूँगा। अतः मुझे संस्कृत और अंग्रेजी – . खासकर दूसरी – भाषा यथेष्ट रूप से जाननेवाले व्यक्ति – या शशि या तुम या सारदा की आवश्यकता है। अब अगर तुम पुनः पूर्ण स्वस्थ हो गये हो, तो बहुत अच्छा, तुम चले आओ, या शरत् को भेजो। अनुगामियों को, जिन्हें मैं छोड़ जाऊँगा, शिक्षा देने, वेदान्त के अध्ययन के लिए उन्हें प्रस्तुत करने, अंग्रेजी में कुछ अनुवाद करने तथा कभी कभी (समय समय पर) व्याख्यान देने का कार्य है। कर्मणा बाध्यते बुद्धिः।

अमुक आने को बहुत उत्सुक है, किन्तु जब तक आधार सुदृढ़ नहीं होता, किसी भी चीज के गिर जाने की बहुत संभावना है। इस पत्र के साथ मैं एक चेक भी भेज रहा हूँ। कोई भी आये – (किन्तु) कपड़े और दूसरी आवश्यक चीजें ख़रीद लो। मास्टर महाशय महेन्द्र बाबू के नाम चेक भेज रहा हूँ। गंगाधर का तिब्बती ‘चोगा’ मठ में है, उसी तरह का ‘चोग़ा’, गेरूआ रंग का, दर्जी से बनवा लो। ध्यान रखना कि कॉलर थोड़ा ऊँचा हो, जिसमें गला और गर्दन रहे।… इसके अतिरिक्त तुम्हारे पास एक गर्म ओवरकोट अवश्य हो, क्योंकि यहाँ सर्दी बहुत है। जहाज पर यदि तुम ओवरकोट पहने नहीं रहोगे, तो तुम्हें बहुत कष्ट होगा।… मैं द्वितीय श्रेणी का टिकट भेज रहा हूँ, क्योंकि प्रथम श्रेणी और द्वितीय श्रेणी के बर्थ में अधिक अन्तर नहीं है।

…अगर शशि को भेजना निश्चित हो, तो जहाज के ख़जांची को पहले ही सूचित कर दो, जिसमें उसके लिए निरामिष भोजन का प्रबन्ध कर दे।

बम्बई जाकर मेसर्स किंग, किंग एण्ड कम्पनी, फोर्ट, बम्बई से मुलाकात करो और उनसे कहो कि तुम श्री स्टर्डी के आदमी हो। तब वे तुम्हें इंग्लैण्ड तक का टिकट दे देंगे। यहाँ से आदेश के साथ कम्पनी को एक पत्र भेजा जा रहा है। मैं खेतड़ी के महाराजा को भी लिख दे रहा हूँ कि वे अपने बम्बई के एजेण्ट को आदेश दे कि तुम्हारा पैसेज सुरक्षित कराने की व्यवस्था कर दे। अगर १५० की रकम तुम्हारे वस्त्रों के लिए पर्याप्त न हो, तो शेष राखाल से ले लेना। बाद मे मैं वह राशि उसे भेज दूँगा। जेब-ख़र्च के लिए और ५० रुपये रख लेना – राखाल से ले लेना; बाद में मैं चुकता कर दूँगा। चुनी बाबू को जो धन मैंने भेजा था, उसकी प्राप्ति की कोई सूचना मुझे अब तक नहीं मिली है। जितना शीघ्र हो सके, प्रस्थान करो। महेन्द्र बाबू को सूचित कर दो कि कलकत्ता में वे ही मेरे एजेंट हैं। उनसे कहो कि अगली डाक से श्री स्टर्डी को यह सूचित करते हुए पत्र लिख दें कि वे कलकत्ता में तुम्हारी ओर से व्यापार सम्बन्धी सभी कार्यों की देख-भाल करेंगे। वस्तुतः श्री स्टर्डी इंग्लैण्ड में मेरे सचिव हैं, महेन्द्र बाबू कलकत्ता में और आलासिंगा मद्रास में। यह सूचना मद्रास भी भेज देना। यदि हम सभी कटिबद्ध होकर काम न करें, तो क्या कोई काम हो सकता है? अतः तैयार हो जाओ और कार्य आरंभ कर दो! ‘भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है।’ पीछे मुड़कर मत देखो – आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है – और तभी महत् कार्य निष्पन्न किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है।

जिस दिन जहाज प्रस्थान करने को हो, उस दिन तुम श्री स्टर्डी को यह सूचित करते हुए पत्र लिख दो कि किस जहाज से इंग्लैण्ड आ रहे हो। अन्यथा लंदन पहुँचने पर तुम्हें कठिनाई में पड़ने की संभावना है। उसी जहाज से आओ, जो सीधे लंदन आता हो, यद्यपि यात्रा (समुद्र) में कुछ अधिक दिन भी लग जाता हो, किंन्तु भाड़ा कम होगा। अभी तो पैसे कम हैं। समय आने पर हम लोग पृथ्वी के सभी भागों में बड़ी संख्या में उपदेशक भेजेंगे।

सस्नेह तुम्हारा ही,
विवेकानन्द

पुनश्च – तुम बम्बई जा रहे हो – यह खेतड़ी के महाराजा को शीघ्र लिख दो और यह भी कि उनका एजेन्ट पैसेज सुरक्षित कराने तथा जहाज पर चढ़ा देने आदि में प्रस्तुत रहा, तो प्रसन्नता होगी।

पॉकेट-बुक में मेरा पता लिखकर रख लेना, जिसमे आगे कोई कठिनाई न हो।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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