स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (13 सितम्बर, 1897)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखा गया पत्र)

प्रधान न्यायाध्यक्ष
श्री ऋषिवर मुखोपाध्याय का मकान,
श्रीनगर, काश्मीर
१३ सितम्बर, १८९७

अभिन्नहृदय,

अब मैं काश्मीर आ पहुँचा हूँ। इस देश के बारे में जो प्रशंसा सुनी जाती है, वह सत्य है। ऐसा सुन्दर देश और नहीं हैं, यहाँ के सभी लोग देखने में सुन्दर हैं, किन्तु उनकी आँखें अच्छी नहीं होती हैं। परन्तु इस प्रकार नरक सदृश गन्दे गाँव तथा शहर अन्यत्र कहीं भी नहीं हैं। श्रीनगर में ऋषिवर बाबू के मकान में आश्रय लिया है। वे अत्यन्त आवभगत भी कर रहे हैं। मेरे नाम के पत्रादि उन्हीं के पते पर भेजना। दोएक दिन के अन्दर ही भ्रमणार्थ मैं अन्यत्र जाऊँगा; किन्तु लौटते समय पुनः श्रीनगर वापस आऊँगा, अतः पत्रादि मुझे मिल जाएँगे। गंगाधर के बारे में तुम्हारा भेजा हुआ पत्र मिला। उसको लिख देना कि मध्यप्रदेश में अनेक अनाथ हैं एवं गोरखपुर में भी। वहाँ से पंजाबी लोग अधिक संख्या में बालक मँगवा रहे हैं। महेन्द्र बाबू से कह-सुनकर इसके लिए एक आन्दोलन करना उचित है – जिससे कलकत्ते के लोग उन अनाथों के पालन-पोषणदि का उत्तरदायित्व ग्रहण करें; तदर्थ एक आन्दोलन होना चाहिए। खासकर मिशनरियों ने जितने अनाथ लिए हैं, उन्हें वापस दिलवाने के लिए सरकार को एक स्मृति-पत्र भेजना आवश्यक है। गंगाधर को आने के लिए लिख दो तथा श्रीरामकृष्ण-सभा की ओर से इसके लिए एक विराट् आन्दोलन करना उचित है। कमर कसकर घर-घर जाकर इसके लिए आन्दोलन करो। सार्वजनिक सभा की व्यवस्था करो। चाहे सफलता मिले अथवा नहीं, एक विराट् आन्दोलन प्रारम्भ कर दो। मध्यप्रदेश तथा गोरखपुर आदि स्थानों में जो मुख्य-मुख्य बंगाली हैं, उन्हें पत्र लिखकर तमाम विवरण अवगत करा दो एवं घोर आन्दोलन शुरू करो। श्रीरामकृष्ण-सभा एकदम प्रकाश में आ जाय। आन्दोलन पर आन्दोलन होना चाहिए – विराम न हो, यही रहस्य है। सारदा (स्वामी त्रिगुणातीतानन्द) की कार्यप्रणाली को देखकर मैं अत्यन्त आनन्दित हूँ। गंगाधर तथा सारदा जहाँ जिस जिले में भी जाएँ, वहाँ केन्द्र स्थापित किए बिना विश्राम न लें।

अभी-अभी गंगाधर का पत्र मिला। वह उस जिले में केन्द्र स्थापित करने के लिए कटिबद्ध है – बहुत ही अच्छी बात है। उसे लिखना कि उसके मॅजिस्ट्रेट मित्र ने मेरे पत्र का अत्यन्त सुन्दर जवाब दिया है, काश्मीर से नीचे आते ही लाटू, निरंजन, दीनू तथा खोका को मैं भेज दूँगा; क्योकि उन लोगों के द्वारा यहाँ पर कोई कार्य सम्पादन सम्भव नहीं है, एवं बीस-पच्चीस दिन के अन्दर शुद्धानन्द, सुशील तथा और किसी एक व्यक्ति को भेज देना। उन लोगों को अम्बाला छावनी मेडिकल हॉल, श्यामाचरण मुखोपाध्याय के मकान में भेजना। वहाँ से मैं लाहौर जाऊँगा। प्रत्येक के लिए दो-दो गेरुए रंग के मोटे बनियान, बिछाने तथा ओढ़ने के लिए दो-दो कम्बल और हर समय के लिए गरम चद्दर आदि लाहौर से खरीद दूँगा। अगर ‘राजयोग’ का अनुवाद-कार्य पूरा हो चुका हो तो प्रकाशन का सभी खर्च बर्दाश्त कर उसको प्रकाशित करवा दो।… इसमें जो भाषा की दुरूहता हो उसको अत्यधिक स्पष्ट एवं सुबोध बना देना। और तुलसी से उसको हिन्दी में रूपान्तरित करवा दो अगर वह कर सकता है। यदि ये किताबें प्रकाशित हो जाती हैं तो वे मठ के लिए सहायक सिद्ध होंगी।

तुम्हारा शरीर सम्भवतः अब ठीक होगा। धर्मशाला पहुँचने के बाद अभी तक मेरा शरीर ठीक है। मुझे सर्दी अनुकूल प्रतीत होती है एवं शरीर भी ठीक रहता है। काश्मीर में दो-एक स्थान देखने के पश्चात् किसी उत्तम स्थान में चुपचाप बैठने की अभिलाषा है, अथवा नदियों में भ्रमण करता रहूँगा। डॉक्टर जैसी सलाह देंगे, उसे पालन करूँगा। इस समय राजा साहब यहाँ पर मौजूद नहीं हैं। उनके मध्यम भ्राता, जो कि सेनापति हैं, यहाँ पर मौजूद हैं। उनकी देख-रेख में एक वक्तृता का आयोजन हो रहा है। जैसा होगा बाद में सूचित करूँगा। दो-एक दिन के अन्दर यदि वक्तृता की व्यवस्था हो सकती हो तो प्रतीक्षा करूँगा; वरना भ्रमण के लिए चल दूँगा। सेवियर मरी में ही विश्राम कर रहे हैं। ताँगे की यात्रा से उनका शरीर अत्यन्त अस्वस्थ हो गया है। मरी में जो बंगाली लोग रहते हैं, वे अत्यन्त ही अच्छे तथा भद्रपुरुष हैं।

गिरीशचन्द्र घोष, अतुल, मास्टर महाशय इत्यादि सभी से मेरा साष्टांग प्रणाम कहना और सभी लोगों में पर्याप्त रूप से उत्साह तथा उत्तेजना बढ़ाते रहना। योगेन ने जो मकान खरीदने के बाबत कहा था, उसका क्या हुआ? अक्टूबर माह में यहाँ से उतरकर पंजाब में दो-चार व्याख्यान देने का मेरा विचार है। उसके बाद सिन्ध होते हुए कच्छ, भुज तथा काठियावाड़ – सुयोग-सुविधा होने पर पूना तक जा सकता हूँ। अन्यथा बड़ौदा होकर राजपूताना एवं राजपूताना से उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रदेश एवं नेपाल, अनन्तर कलकत्ता – इस समय यही कार्यक्रम है, आगे प्रभु की इच्छा। सबसे मेरा प्रणाम, आशीर्वाद आदि कहना।

सस्नेह,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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