स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (21 नवम्बर, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द लिखा गया पत्र)
२१ पश्चिम, ३४ नं. रास्ता, न्यूयार्क,
२१, नवम्बर, १८९९
प्रिय ब्रह्मानन्द,
हिसाब ठीक है। मैंने उन कागजों को श्रीमती बुल को सौंप दिया है तथा उन्होंने विभिन्न दाताओं को उक्त हिसाब के विभिन्न अंश सूचित करने की जिम्मेवारी अपने ऊपर ली है। पहले की कठोर चिट्ठियों में मैंने जो कुछ लिखा है, उसका कुछ ख्याल न करना। उससे तुम्हारा भला ही होगा। प्रथम, उसके फलस्वरूप भविष्य में तुम व्यवहार-कुशल होकर नियमित रूप से ठीक-ठीक हिसाब रखना सीखोगे एवं अन्य गुरुभाइयों को भी सिखा सकोगे। द्वितीय, इन भर्त्सनाओं के बाद भी यदि तुम लोग साहसी न बन सको, तो मैं तुमसे और कुछ भी आशा भविष्य में नहीं करूँगा। तुम लोगों को मरते हुए भी देखना चाहता हूँ, फिर भी तुम्हें संग्राम करना होगा! सिपाही की तरह आज्ञा-पालनार्थ अपनी जान तक दे दो एवं निर्वाण-लाभ करो, किन्तु कायरपन को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया जा सकता।
कुछ दिन तक के लिए लोप हो जाना मेरे लिए आवश्यक हो गया है। उस समय न तो कोई मुझे पत्र दे और न मुझे ढूँढ़े। मेरे स्वास्थ्य के लिए ऐसा करना नितान्त आवश्यक है। मेरे स्नायु दुर्बल हो गये हैं – बस इतना ही, और कोई विशेष बात नहीं है।
तुम्हारा सर्वांगीण कल्याण हो। मेरी कठोरता के लिए नाराज न होना। चाहे मैं कुछ भी क्यों न कहूँ – मेरा हृदय तुमसे छिपा नहीं है। तुम लोगों का सर्वविध मंगल हो। विगत प्रायः एक वर्ष से मैं मानो एक प्रकार के आवेश के साथ बढ़ रहा हूँ। मैं इसका कारण नहीं जानता हूँ। भाग्य में इस प्रकार की नरक-यातना को भोगना लिखा हुआ था – और मैं उसे भोग चुका हूँ। वास्तव में मैं पहले की अपेक्षा बहुत कुछ अच्छा हूँ। प्रभु तुम लोगों के सहायक बनें! चिर विश्राम के लिए शीघ्र ही में हिमालय जा रहा हूँ। मेरा कार्य समाप्त हो चुका है। सदा प्रभुपदाश्रित
तुम्हारा,
विवेकानन्द
पुनश्च – श्रीमती बुल अपना प्यार प्रेषित कर रही हैं।