स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (8 दिसम्बर, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखा गया पत्र)
खेतड़ी,
८ दिसम्बर, १८९७
अभिन्नहृदय,
कल हम लोग खेतड़ी के लिए रवाना होंगे। देखते-देखते हम लोगों का सामान बहुत बढ़ गया है। खेतड़ी पहुँचकर सभी को मठ में भेजने का विचार है। इनके द्वारा जिन कार्यों की मुझे आशा थी, उसका कुछ भी न हो सका। अर्थात् मेरे साथ रहने से कोई भी व्यक्ति कुछ भी कार्य नहीं कर सकेगा – यह निश्चित है। स्वतंत्र रूप से भ्रमण किए बिना इन लोगों के द्वारा कुछ भी नहीं हो सकेगा। अर्थात् मेरे साथ रहने से इनको कौन पूछेगा – केवल मात्र समय नष्ट करना है। इसीलिए इन लोगों को मठ में भेज रहा हूँ।
दुर्भिक्ष कोष में जो धन अवशिष्ट है, उसे किसी स्थायी कार्य के लिए पृथक् कोष में जमा रखने की व्यवस्था करना। अन्य किसी कार्य में उस पैसे को खर्च न करना तथा दुर्भिक्ष-कार्य का पूर्ण विवरण देकर यह लिख देना कि ‘इतने रुपये किसी अन्य अच्छे कार्य के लिए रखे हुए हैं।’
मैं काम चाहता हूँ – किसी प्रकार की धोखाधड़ी नहीं चाहता हूँ। जिन लोगों की काम करने की इच्छा नहीं हैं, उनसे मुझे यही कहना है कि वे अभी से अपना रास्ता देखें। यदि तुम्हारा मुख्तारनामा खेतड़ी पहुँच गया होगा तो वहाँ पहुँचते ही मैं उस पर हस्ताक्षर कर तुम्हें भेज दूँगा। अमेरिका के बोस्टन की मुहर जिन पत्रों पर हो, केवल उन्हीं पत्रों को खोलना; अन्य पत्रादि नहीं खोलना। मेरे पत्रादि खेतड़ी के पते पर भेज देना। राजपूताना में ही मुझे धन मिल जायगा, तदर्थ चिन्तित न होना। तुम लोग जी-जान से जगह के लिए प्रयास करो – अबकी बार अपनी जमीन पर ही महोत्सव करना होगा।
रुपये क्या बंगाल बैंक में जमा हैं अथवा तुमने अन्यत्र कहीं रखे हैं? रुपये-पैसों के बारे में विशेष ध्यान रखना; पूरा पूरा हिसाब रखना एवं यह ख्याल रखना कि धन के बारे में अपने बाप पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता।
सबसे प्यार कहना। हरि का स्वास्थ्य कैसा है, लिखना। देहरादून में उदासी साधु कल्याणदेव तथा और भी दो-एक जनों के साथ भेंट हुई थी। हृषीकेश के लोग मुझे देखने के लिए विशेष उत्सुक हैं – ‘नारायण हरि’ की बात बार-बार पूछी जाती है।
सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द