स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी कृपानन्द को लिखित (अगस्त, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी कृपानन्द को लिखा गया पत्र)

स्विट्जरलैण्ड,
अगस्त, १८९६

प्रिय कृपानन्द,

तुम पवित्र तथा सर्वोपरि निष्ठावान बनो; एक मुहूर्त के लिए भी भगवान् के प्रति अपनी आस्था न खोओ, इसीसे तुम्हें प्रकाश दिखायी देगा। जो कुछ सत्य है, वही चिरस्थायी बनेगा, किन्तु जो सत्य नहीं है, उसकी कोई भी रक्षा नहीं कर सकता। आधुनिक समय में तीव्र गति से प्रत्येक वस्तु की खोज की जाती है, इस समय हमारा जन्म होने के कारण हमें बहुत कुछ सुविधा प्राप्त हुई है और लोग चाहे कुछ भी क्यों न सोचें, तुम कभी अपनी पवित्रता, नैतिकता तथा भगवत्प्रीति के आदर्श को छोटा न बनाना। सभी प्रकार की गुप्त संस्थाओं से सावधान रहना, इस बात का सबसे अधिक ख्याल रखना। भगवत्प्रेमियों को किसी इन्द्रजाल से नहीं डरना चाहिए। स्वर्ग तथा मर्त्य लोक में सर्वत्र केवल पवित्रता ही सर्वश्रेष्ठ तथा दिव्यतम शक्ति है। सत्यमेव जयते नानृतम्, सत्येन पन्था विततो देवयानः। – ‘सत्य की ही जय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही मध्य होकर देवयान मार्ग अग्रसर हुआ है’ कोई तुम्हारा सहगामी बना या न बना, इस विषय को लेकर माथापच्ची करने की आवश्यकता नहीं है; केवल प्रभु का हाथ पकड़ने में भूल न होनी चाहिए, बस इतना ही पर्याप्त है।

कल मैं ‘माँन्टि रोसा’ हिमनद के किनारे गया था तथा चिरकालिक हिम के प्रायः मध्य में उत्पन्न कुछ एक सदाबहार फूल तोड़ लाया था। उनमें से एक इस पत्र के अन्दर रखकर तुम्हारे लिए भेज रहा हूँ – आशा है कि इस पार्थिव जीवन के समस्त हिम तथा बर्फ के बीच में तुम भी उसी प्रकार की आध्यात्मिक दृढ़ता प्राप्त करोगे।

तुम्हारा स्वप्न अति सुन्दर है। स्वप्न में हमें अपने एक ऐसे मानसिक ‘स्तर’ का परिचय मिलता है, जिसकी अनुभूति जाग्रत दशा में नहीं होती और कल्पना चाहे कितनी ही ख्याली क्यों न हो – अज्ञात आध्यात्मिक सत्य सदा कल्पना के पीछे रहते हैं। साहस से काम लो। मानव जाति के कल्याण के लिए हम यथासाध्य प्रयास करेंगे, शेष सब प्रभु पर निर्भर है।…

अधीर न बनो, उतावली न करो। धैर्यपूर्ण, एकनिष्ठ तथा शान्तिपूर्ण कर्म के द्वारा ही सफलता मिलती है। प्रभु सर्वोपरि है। वत्स, हम अवश्य सफल होंगे – सफलता अवश्य मिलेगी। ‘उसका’ नाम धन्य है!

अमेरिका में कोई आश्रम नहीं है। यदि एक आश्रम होता तो क्या ही सुन्दर होता! उससे मुझे न जाने कितना आनन्द मिलता और उसके द्वारा इस देश का न जाने कितना कल्याण होता!

शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!
Exit mobile version