स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (1894)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र )

द्वारा श्री जार्ज डब्ल्यू. हेल,
५४१, डियरबोर्न एवेन्यू, शिकागो,
१८९४

प्रिय शशि,

तुम लोगों के पत्र मिले। बड़ा आनन्द हुआ। मजूमदार की कारस्तानी सुनकर अत्यन्त दुःख हुआ। जो दूसरे को धक्के देकर आगे बढ़ना चाहता है, उसका आचरण ऐसा ही होता है। मेरा कोई अपराध नहीं। वह दस वर्ष पहले यहाँ आया था, उसका बड़ा आदर हुआ और खूब सम्मान मिला। अब मेरे पौ बारह हैं। श्री गुरु की इच्छा, मैं क्या करूँ! इसके लिए गुस्सा होना मजूमदार की नादानी है। खैर, उपेक्षितव्यं तद्वचनं भवत्सदृशानां महात्मनाम्। अपि कीटर्दशन-भीरुकाः वयं रामकृष्णतनयाः तद्हृदयरुधिरपोषिताः। ‘अलोकसामान्यमचिन्त्यहेतुकं निन्दन्ति मन्दाश्चरितं महात्मनाम्’ इत्यादीनि संस्मृत्य क्षन्तव्योऽयं जाल्मः।1 प्रभु की इच्छा है कि इस देश के लोगों में अन्तर्दृष्टि जाग्रत हो। फिर क्या यह किसी की शक्ति के भीतर है कि उसकी गति को रोक सके? मुझे नाम की आवश्यकता नहीं – I want to be a voice without a form.2 हरमोहन आदि किसी को मेरा समर्थन करने की आवश्यकता नहीं – कोऽहं तत्पादप्रसरं प्रतिरोद्धुं समर्थयितुं वा, के वान्ये हरमोहनाद्रयः? तथापि मम हृदयकृतज्ञता तान् प्रति। ‘यस्मिन् स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते’ – नैषः प्राप्तवात् तत्पद्वीमिति मत्वा करुणादृष्ट्या द्रष्टव्योऽयमिति।3 प्रभु की इच्छा से अभी तक नाम-यश की आकांक्षा हृदय में उत्पन्न नहीं हुई है, शायद होगी भी नहीं। मैं यन्त्र हूँ, वे यन्त्री हैं! वे इस यंत्र द्वारा इस दूर देश में हजारों हृदयों में धर्म भाव उद्दीप्त कर रहे हैं। हजारों स्त्री-पुरुष मुझसे यहाँ प्रेम एवं श्रद्धा रखते हैं। मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्4 – मुझे उनकी कृपा पर आश्चर्य हैं। जिस भी शहर में जाता हूँ, उथल-पुथल मच जाती है। यहाँ वालों ने मेरा नाम रखा है, ण्ब्म्त्दहग्म् प्ग्ह्ल्.5 याद रखना, सब उनकी ही इच्छा से होता है – I am a voice Without a form

इंग्लैण्ड जाऊँगा या यमलैण्ड (यमपुरी) जाऊँगा, प्रभु जाने। वही सब बन्दोबस्त कर देगा। इस देश में एक सिगार की कीमत एक रुपया है। किराये की गाड़ी पर एक बार चढ़ने में तीन रुपये खर्च हो जाते हैं; एक कुर्ते की कीमत १०० रुपया है। नौ रुपये रोज का होटल खर्च है। सब प्रभु जुटा देते हैं।… प्रभु की जय, मैं तो कुछ भी नहीं जानता। सत्यमेव जयते नानृतम्, सत्येनैव पंथा विततो देवयानः6 तुम्हें निर्भय होना चाहिए। डरते हैं का पुरुष, वही आत्मसमर्थन करते हैं। हममें से कोई भी मेरा समर्थन करने के लिए लोहा न ले। मद्रास और राजपूताने की खबर मुझे बीच-बीच में मिलती रहती है। ‘इण्डियन मिरर’ ने तबेले की बला बन्दर के सिर लादने वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मुझसे खूब चुटकियाँ ली हैं – सुनी किसी की बात, और डाल दी गयी किसी के सर। सब खबरें पाता हूँ। अरे, भाई, ऐसी आँखें हैं, जो ७००० कोस दूर तक देख सकती हैं, यह बात बिल्कुल सच है। अभी चुप रहो, धीरे-धीरे समय पर सब बातें निकल आएँगी – जहाँ तक उनकी इच्छा होगी, उनकी एक भी बात झूठ नहीं होने की। भाई, कुत्ते-बिल्ली की लड़ाई देखकर क्या कहीं मनुष्य दुःखी होते हैं? इसी तरह साधारण मनुष्यों का लड़ाई-झगड़ा और ईर्ष्या-द्वेष देखकर तुम लोगों के मन में कोई दूसरा भाव न आना चाहिए। आज छः महीने से कह रहा हूँ कि पर्दा हट रहा है और सूर्य उदित हो रहा है, हाँ, पर्दा उठता जाता है, धीरे-धीरे उठता जाता है, एत्दै Slow but sure (धीरे-धीरे, परन्तु निश्चित रूप से) समय आने पर तुम इसे जान जाओगे। वे जानें – ‘मन की बात क्या कहूँ? सखी! – कहने की मनाही है।’ भाई, ये सब लिखने-कहने की बातें नहीं। तुम लोगों को छोड़ मेरा पत्र कोई न पढ़े। पतवार न छोड़ना, उसे कसके पकड़े रहो – हम उसे ठीक से ले रहे हैं, इसमें जरा भी भूल न होने पाये ; रही पार जाने की बात, सो आज या कल – बस, इतना ही। दादा, Leader (नेता) क्या कभी बनाया जा सकता है? नेता पैदा होता है, समझे? और फिर लीडरी करना बड़ा कठिन काम है – दासस्य दासः – ‘दासों का दास’ और हजारों आदमियों का मन रखना। Jealousy, selfi shness (ईर्ष्या, स्वार्थपरता) जब जरा भी न हो, तभी तुम नेता बन सकते हो। पहले तो By birth (जन्मसिद्ध), फिर Unselfish (निःस्वार्थी) हो, तभी कोई नेता बन सकता है। सब कुछ ठीक-ठीक हो रहा है, सब ठीक हो जाएगा। प्रभु ठीक जाल फेंक रहे हैं, वे ठीक जाल खींच रहे हैं – वयमनुसरामः, वयमनुसरामः, प्रीतिः परमसाधनम्7 – समझे? Love conquers in the long run.8 हैरान होने से काम नहीं चलेगा – Wait, wait (प्रतीक्षा करो) – धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है।…

तुमसे कहता हूँ, भाई, जैसा चलता है, चलने दो – परन्तु देखना, कोई form (बाह्य अनुष्ठान-पद्धति) अनिवार्य न बन जाए – Unity in variety (बहुत्व में एकत्व) – इसका ध्यान रखना कि सार्वजनिक भाव में किसी तरह की बाधा न हो। Everything must be sacrificed, if necessary, for that one sentiment – Universality.9 मैं मरूँ, चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि सार्वजनीनता – Perfect acceptance, not tolerance only, we preach and perform.Take care how you trample on the least rights of others.10 इसी भँवर में बड़े-बड़े जहाज डूब गए हैं। याद रखो कि कट्टरतारहित पूर्ण निष्ठा ही हमें दिखानी होगी। उनकी कृपा से सब ठीक हो जाएगा। मठ कैसे चल रहा है? उत्सव कैसा रहा? गोपाल दादा और हुटको कहाँ और कैसे हैं? और गुप्त कहाँ हैं और कैसे हैं? लिखना। सबकी इच्छा है कि नेता बनें – परन्तु वह पैदा तो होता है – यही न समझने के कारण इतना अनिष्ट होता है। प्रभु की कृपा से राम दादा शीघ्र ही ठंडे हो जाएँगे और समझ सकेंगे। उनकी कृपा से कोई भी वंचित न रहेगा। जी. सी. घोष क्या कर रहे हैं?

हमारी माताएँ सकुशल तो हैं? गौरी माँ कहाँ हैं? हजारों गौरी माताओं की आवश्यकता है, जिनमें उन्हीं के समान noble stirring spirit (महान् एवं तेजोमय भाव) हो। आशा है, योगेन माँ आदि सभी सकुशल होंगे। भैया, मेरा हृदय इतना भरपूर हो रहा है कि लगता है कि बाद में भाव को सँभाल न सकूँगा। महिम चक्रवर्ती क्या कर रहा है? उसके पास आते-जाते रहना, वह भला आदमी है। हम सभी को चाहते हैं – It is not at all necessary that all should have same faith in our Lord as we have, but we want to unite powers of goodness against all the powers of evil.11 मास्टर महाशय को मेरी ओर से अनुरोध करो। He can do it. (वे यह कर सकते हैं) हममें एक बड़ा दोष यह है कि हम अपने संन्यास धर्म के प्रति गर्व का अनुभव करते हैं। पहले-पहल उसकी उपयोगिता थी, अब तो हम लोग पक गए हैं, उसकी अब बिल्कुल आवश्यकता नहीं। समझे? संन्यासी और गृहस्थ में कोई भेद न करना चाहिए, तभी वह यथार्थ संन्यासी हो सकेगा। सभी को बुलाकर कहना – मास्टर, जी. सी. घोष, राम दादा, अतुल इत्यादि सभी को – कि ५-७ लड़कों ने, जिनके पास एक पैसा भी न था, मिलकर एक काम शुरू किया और जो अब तीव्र गति से बढ़ता जा रहा है – वह सब क्या कोरा पाखंड है, या प्रभु की इच्छा? यदि प्रभु की इच्छा है, तो तुम लोग गुट्टबाजी और Jealousy (ईर्ष्या) छोड़कर United action (एक होकर कार्य) करो। Shameful (लज्जा की बात है) – हम लोग Universal religion (सार्वजनीन धर्म) बनाने जा रहे हैं गुट्टबाजी करके। अगर गिरीश घोष, मास्टर और रामबाबू उसे कार्य में परिणत कर सकें, तो मैं उन्हें बहादुर तथा ईमानदार समझूँगा; अन्यथा वे झूठे, Nonsense (कुछ काम के नहीं) हैं।

यदि सभी किसी दिन एक क्षण के लिए भी समझ सकें कि सिर्फ इच्छा होने से ही कोई बड़ा नहीं हो जाता बल्कि जिसे प्रभु उठाते हैं, वही उठता है, जिसे वे गिराते हैं, वह गिरता है, तो उलझन कुछ सुलझ जाए। परन्तु वह ‘अहं’ – खोखला अहं – जिसके पास पत्ता खड़काने तक की शक्ति नहीं, अगर दूसरे से कहें, मैं किसी को, ‘उठने न दूँगा’, तो कितनी उपहासास्पद बात है! यही Jealousy (ईर्ष्या) और absence of conjoined action (सम्मिलित होकर कार्य करने की शक्ति का अभाव) गुलाम जाति का nature (स्वभाव) है; परन्तु हमें इसे उखाड़ फेंकने की चेष्टा करनी चाहिए। यही terrible jealousy हमारी characteristic है – (यही भयानक ईर्ष्या हमारा प्रधान लक्षण है।)… दस-पाँच देश देखने से ही यह अच्छी तरह मालूम हो जाएगा। हम यहाँ वालों से स्वाधीनता पाये हुए नीग्रो के समान हैं, जो अगर उनमें से कोई भी उन्नति करके बड़ा आदमी हो गया, तो वे white (गोरों) के साथ मिलकर उसे नेस्त-नाबूद कर देने के लिए जी-जान से प्रयत्न करते हैं। हम ठीक वैसे ही हैं। गुलाम कीड़े – पैर उठाकर रखने की भी ताकत नहीं – बीवी का आँचल पकड़े ताश खेलते और हुक्का गुड़गुड़ाते हुए जिन्दगी पार कर देते हैं, और अगर उनमें कोई एक कदम बढ़ जाता है, तो सबके सब उसके पीछे पड़ जाते हैं – हरे हरे! At any cost, any price, any sacrifice (जिस तरह से भी हो और इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पड़े, चाहे कितना ही त्याग करना पड़े) हमें यह प्रयत्न करना होगा कि यह भाव हमारे भीतर न घुसने पाये। हम दस हों, या दो – do not care. (परवाह नहीं), परन्तु जितने हों, perfect character (सम्पूर्ण आदर्श चरित्र) हों। हमारे भीतर जो आपस में किसी की चुगली करें, या सुनें, उसे निकाल देना उचित है। यह चुगली ही सर्वनाश का मूल कारण है, समझे? हाथ दर्द करने लगा…अब अधिक नहीं लिख सकता। ‘माँगों भलो न बाप से, रघुबर राखें टेक’, रघुवर टेक रखेंगे दादा – इस विषय में तुम निश्चिन्त रहो। बंगाल में उनके नाम का प्रचार हो या न हो, इसकी मुझे परवाह नहीं। राजपूताना, पंजाब, N. W. P., (उत्तर-पश्चिम प्रान्त), मद्रास आदि प्रान्तों में उनका प्रचार करना होगा। राजपूताने में जहाँ ‘रघुकुल रीति सदा चलि आयी, प्राण जाइ बरु बचन न जायी’, अभी तक विद्यमान है।

चिड़िया अपनी उड़ान के दर्मियान उड़ते-उड़ते एक जगह पहुँचती है, जहाँ से अत्यन्त शान्त भाव से वह नीचे की ओर देखती है। क्या तुम वहाँ पहुँच चुके हो? जो लोग वहाँ नहीं पहुँचे हैं, उन्हें दूसरे को शिक्षा देने का अधिकार नहीं। हाथ पैर ढीले करके धारा के साथ बह जाओ और तुम अपने गन्तव्य पर पहुँच जाओगे।

सर्दी धीरे-धीरे भाग रही है और जाड़ा तो मैंने किसी तरह काट दिया। जाड़े में यहाँ तमाम देह में electricity (बिजली) भर जाती है। Shake hand करो, तो Shock (आघात) लगता है। और उससे आवाज आती है। अँगुलियों से गैस जलायी जा सकती है। और सर्दी का हाल तो मैंने लिखा ही है। सारे देश में अपनी धाक जमाये फिरता हूँ, परन्तु शिकागो मेरा ‘मठ’ है, जहाँ घूम-फिरकर मैं फिर आ जाता हूँ। इस समय पूरब को जा रहा हूँ। कहाँ बेड़ा पार होगा, प्रभु ही जाने। माता जी जयरामवाटी गयी हैं, आशा है, उनका स्वास्थ्य अब ठीक हो गया होगा। तुम लोगों का कैसा चल रहा है, कौन चला रहा है? क्या रामकृष्ण, उनकी माँ तुलसीराम इत्यादि उड़ीसा गए हैं?

… क्या दाशु की तुम लोगों पर वैसी ही प्रीति है? वह प्रायः आया करता है न? भवनाथ कैसा है और वह क्या कर रहा है? तुम लोग उसके पास जाते हो या नहीं और उसकी मान-जान करते हो या नहीं? सुनो, संन्यासी-फन्यासी झूठ बात है – मूकं करोति वाचालं इत्यादि, किसके भीतर क्या है, समझ में नहीं आता। श्रीरामकृष्ण ने उसे बड़ा बनाया है और वह हमारा पूज्य है। यदि इतना देख-सुनकर भी तुम लोगों को विश्वास न हो, तो धिक्कार है तुम लोगों को! वह तुम्हें भी प्यार करता है न! उसे मेरा आंतरिक प्यार कहना। कालीकृष्ण बाबू को भी मेरा प्यार, वे बड़े उन्नतमना व्यक्ति हैं, रामलाल कैसा है? उसे कुछ विश्वास-भक्ति हुई? उसे मेरा प्यार एवं ‘नमस्कार’। सान्याल कोल्हू में ठीक घूम रहा है न? उससे कहो कि धैर्य रखो – कोल्हू ठीक चलता रहेगा। सबको मेरा हार्दिक प्यार।

अनुरागैकहृदयः,
नरेन्द्र

पुनश्च – पूजनीया माता जी को उनके जन्म-जन्मान्तर के दास का साष्टांग प्रणाम – उनके आशीर्वाद से मेरा सर्वांगीण मंगल है।

विवेकानन्द



  1. तुम जैसे महात्माओं को चाहिये कि उसकी उपेक्षा करो। हम राम-कृष्णतनय हैं, उन्होंने अपने हृदय के रुधिर से हमें हृष्ट-पुष्ट किया है। क्या हम कीड़े के काटने से डर जायँ ? ‘मन्दबुद्धि मनुष्य महात्माओं के असाधारण और सहज ही, जिनका कारण नहीं बतलाया जा सकता, ऐसे आचरणों की निन्दा किया करते हैं।’ (कुमारसम्भव)–आदि वाक्यों का स्मरण करके हम मूर्ख को क्षमा करना।
  2. मैं निराकार वाणी हो जाना चाहता हूँ।
  3. उनके प्रभाव विस्तार की गति में बाधा देनेवाला या उसकी सहायता करनेवाला मैं कौन हूँ ? हरमोहन इत्यादि भी कौन है ? फिर भी सब के प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। ‘जिस अवस्था में स्थित हो जाने पर मनुष्य कठिन दुःख में भी विचलित नहीं होता’ (गीता) – इस मनुष्य को अभी अवस्था नहीं मिली, यह सोचकर इसके प्रति दया-दृष्टि रखनी चाहिये।
  4. मूक को वाकशक्तिसम्पन्न और लँगड़े को पर्वत पार कर जाने में समर्थ करते हैं।
  5. आँधी की तरह, अपने सामने जिस किसी को पाता है, उलट-पुलट देता है – ऐसा शक्तिशाली हिन्दू।
  6. सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं। सत्यबल से ही देवयानमार्ग की प्राप्ति होती है (मुंडकोपनिषद् ३।६) । वेदान्त के मत से मृत्यु के पश्चात् जितनी गतियाँ होती हैं, उनमें से देवयान द्वारा प्राप्त गति श्रेष्ठ है। वनों में उपासना करनेवाले और भिक्षापरायण निष्काम संन्यासियों की ही यह गति होती है।
  7. हम लोग उनका अनुसरण करेंगे, प्रीति ही परम साधन है।
  8. अन्त में प्रेम की ही विजय होती है।
  9. यदि आवश्यक हो, तो सार्वजनीनता के भाव की रक्षा के लिये सब कुछ छोड़ना होगा।
  10. हम लोग सब धर्मों के पूर्ण स्वीकार का–केवल उनके प्रति सहिष्णुता मात्र का भाव नहीं, पालन करते हैं और उसका प्रचार करते हैं। सावधान रहता कि कहीं तुम दूसरों के अधिकारों में हस्तक्षेप तो नहीं करते!
  11. इसकी कोई आवश्यकता नहीं कि हमारे प्रभु (श्रीरामकृष्ण) पर हमारे ही जैसा सबका विश्वास हो। हम केवल संसार की सम्पूर्ण अहितकारी शक्तियों के विरुद्ध सम्पूर्ण कल्याणकारी शक्तियाँ एकत्र करनी चाहते हैं।

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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