स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (22 अक्टूबर, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)
बाल्टिमोर, अमेरिका,
२२ अक्टूबर, १८९४
प्रेमास्पद,
तुम्हारा पत्र पढ़कर सब समाचार ज्ञात हुआ। लन्दन से श्री अक्षयकुमार घोष का भी एक पत्र आज मिला, उससे भी अनेक बातें मालूम हुईं।
तुम्हारे टाउन हॉल में आयोजित सभा का अभिनन्दन यहाँ के समाचार-पत्रों में छप गया है। तार भेजने की आवश्यकता नहीं थी। खैर, सब काम अच्छी तरह सम्पन्न हो गया। उस अभिनन्दन का मुख्य प्रयोजन यहाँ के लिए नहीं, वरन् भारत के लिए है। अब तो तुम लोगों को अपनी शक्ति का परिचय मिल गया – Strike the iron, while it is hot. – (लोहा जब गरम हो, तभी घन लगाओ)। पूर्ण शक्ति के साथ कार्यक्षेत्र में उतर आओ। आलस्य के लिए कोई स्थान नहीं। हिंसा तथा अहंकार को हमेशा के लिए गंगाजी में विसर्जित कर दो एवं पूर्ण शक्ति के साथ कार्य में जुट जाओ। प्रभु ही तुम्हारा पथ-प्रदर्शन करेंगे। समस्त पृथ्वी महा जलप्लावन से प्लावित हो जाएगी। But work, work, work, (पर कार्य, कार्य, कार्य) यही तुम्हारा मूलमंत्र हो। मुझे और कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा है। इस देश में कार्य की कोई सीमा नहीं है – मैं समूचे देश में अन्धाधुन्ध दौड़ता फिर रहा हूँ। जहाँ भी उनका तेज का बीज गिरेगा – वहीं फल उत्पन्न होगा। अद्य वाब्दशतान्ते वा – ‘आज या आज से सौ साल बाद, सबके साथ सहानुभूति रखकर कार्य करना होगा। मेरठ के यज्ञेश्वर मुखोपाध्याय ने एक पत्र लिखा है। यदि तुम उनकी कुछ सहायता कर सकते हो, तो करो। जगत् का हित-साधन करना हमारा उद्देश्य है, नाम कमाना नहीं। योगेन और बाबूराम शायद अभी तक अच्छे हो गए होंगे। शायद निरंजन लंका से वापस आ गया है। उसने लंका में पाली भाषा क्यों नहीं सीखी एवं बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन क्यों नहीं किया, यह मैं नहीं समझ पा रहा हूँ। निरर्थक भ्रमण से क्या लाभ? उत्सव ऐसे मनाना है, जैसा भारत में पहले कभी नहीं हुआ। अभी से उद्योग करो। इस उत्सव के दर्मियान ही लोग मदद देंगे और इस तरह जमीन मिल जाएगी। हरमोहन का स्वभाव बच्चों जैसा है, मैं तुम्हें पहले पत्र लिख चुका हूँ कि माताजी के लिए जमीन का प्रबन्ध कर मुझे यथाशीघ्र पत्र लिखना। किसी-न-किसी को तो कारोबारी होना चाहिए। गोपाल और सान्याल का कितना कर्जा है, लिखना। जो लोग ईश्वर के शरणागत हैं, धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष उन लोगों के पैरों तले हैं, मा भैः मा भैः – डरो मत! सब कुछ धीरे-धीरे हो जाएगा। मैं तुम लोगों से यही आशा करता हूँ कि बड़प्पन, दलबन्दी या ईर्ष्या को सदा के लिए त्याग दो। पृथ्वी की तरह सब कुछ सहन करने की शक्ति अर्जन करो। यदि यह कर सको, तो दुनिया अपने आप तुम्हारे चरणों में आ गिरेगी।
उत्सव आदि में उदरपूर्ति की व्यवस्था कम करके मस्तिष्क की कुछ खुराक देने की चेष्टा करना। यदि बीस हजार लोगों में से प्रत्येक चार-चार आना भी दान करे, तो पाँच हजार रुपया जाएगा। श्रीरामकृष्ण के जीवन तथा उनकी शिक्षा और अन्य शास्त्रों से उपदेश देना! सदा हमको पत्र लिखना। समाचार-पत्रों की कटिंग भेजने की आवश्यकता नहीं। किमधिकमिति।
विवेकानन्द