स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (24 जून, 1896)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)

६३, सेंट जार्जेस रोड,
लन्दन, दक्षिण-पश्चिम,
२४ जून, १८९६

प्रिय शशि,

श्रीरामकृष्ण देव के सम्बन्ध में मैक्स मुलर का लेख आगामी माह में प्रकाशित होगा। वे उनकी एक जीवनी लिखने के लिए राजी हुए है। श्री रामकृष्ण देव की समस्त वाणियों को वे चाहते हैं। उनकी सारी उक्तियों को क्रमबद्ध रूप से लिखकर भेजो – अर्थात् कर्म सम्बन्धी उक्तियों को पृथक रुप से तथा वैराग्य, ज्ञान, भक्ति आदि का संकलन पृथक् पृथक् हो। तुम्हें इस कार्य को अभी प्रारम्भ करना होगा। जो बातें अंग्रेजी में अप्रचलित हों, केवल उनको लिखने की आवश्यकता नहीं है। बुद्धिपूर्वक उन स्थलों में यथासम्भव अन्य वाक्यों का प्रयोग करना। ‘कामिनी-कांचन’ के स्थल पर ‘कामकांचन’ लिखना – lust and gold – अर्थात् उनके उपदेशों में सार्वजनिक भावनाएँ प्रकट होनी चाहिए। यह पत्र और किसी को दिखाने की आवश्यकता नहीं है। तुम उक्त कार्य का सम्पादन कर, उनकी सारी उक्तियों का अंग्रजी में अनुवाद तथा वर्गीकरण कर ‘प्रोफसर मैक्स मूलर, ऑक्सफोर्ड यूनिर्वासिटी, इंग्लैण्ड’ – इस पते पर भेज देना।

शरत् कल अमेरिका रवाना हो रहा है। यहाँ का कार्य परिपक्व होता जा रहा है। लन्दन में एक केन्द्र स्थापित करने के लिए आर्थिक व्यवस्था पहले से ही हो चुकी है। मैं आगामी माह में स्विट्जरलैण्ड जाकर एक-दो माह वहाँ रहना चाहता हूँ। अनन्तर पुनः लन्दन वापस आने का विचार है। मुझे अपना देश लौटने से क्या लाभ है? यह लन्दन दुनिया भर का केन्द्र है। भारत का heart (हृदय) यहीं है। यहाँ पर अपना केन्द्र पक्का किये बिना क्या मेरे लिए जाना उचित है? क्या तुम लोग पागल हो? शीघ्र ही मैं काली को बुलाना चाहता हूँ, उसे तैयार रहने को कहना। पत्र के देखते ही जिससे वह रवाना हो सके। दो-चार दिन के अन्दर ही मैं उसके आने के लिए मार्ग-व्यय भेज रहा हूँ तथा वस्त्र जो भी कुछ आवश्यक हों, वह भी लिख दूँगा। उसीके अनुसार सारी व्यवस्थाएँ होनी चाहिए।

परमाराध्या श्री माता जी आदि सबसे मेरे असंख्य प्रणाम निवेदन करना। तारक दादा मद्रास जा रहे हैं – बहुत ठीक है।

महान् तेज, महान् बल तथा महान् उत्साह की आवश्यकता है। अबलापन से क्या यह कार्य हो सकता है? पहले पत्र में मैंने जो कुछ लिखा था, ठीक, उसी प्रकार से चलने की चेष्टा करना। संगठन चाहिए।

Organisation is power and the secret of that is obedience(संगठन से ही शक्ति आती है एवं आज्ञा-पालन ही उसका मूल रहस्य है।) किमधिकमिति।

तुम्हारा,
नरेन्द्र

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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