स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (19 अगस्त,1897)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)
अम्बाला,
१९ अगस्त, १८९७
प्रिय शशि,
अर्थाभाव के कारण मद्रास का कार्य उत्तम रूप से नहीं चल रहा है, यह जानकर मुझे अत्यन्त दुःख हुआ। आलासिंगा के बहनोई के द्वारा उधार लिए गए रुपये अल्मोड़ा पहुँच चुके हैं, यह जानकर खुशी हुई। गुडविन ने व्याख्यान सम्बन्धी जो धन अवशिष्ट है, उसमें से कुछ रुपये लेने के लिए स्वागत समिति को पत्र देने को लिखा है।… उस व्याख्यान के धन को स्वागत में व्यय करना अत्यन्त हीन कार्य है – इस बारे में मैं किसी से कुछ भी कहना नहीं चाहता। रुपयों के सम्बन्ध में हमारे देशवासियों का आचरण किस प्रकार का है, यह मैंने अच्छी तरह से जान लिया है। तुम स्वयं मेरी ओर से अपने मित्रों को यह बात नम्रतापूर्वक समझा देना कि यदि वे खर्च वहन करने का कोई साधन ढूँढ़ निकाले तो ठीक है, अन्यथा तुम लोग कलकत्ते के मठ में चले जाना अथवा मठ को वहाँ से उठाकर रामनाड़ ले जाना।
मैं इस समय धर्मशाला के पहाड़ पर जा रहा हूँ। निरंजन, दीनू, कृष्णलाल, लाटू एवं अच्युत अमृतसर में रहेंगे। सदानन्द को अभी तक मठ में क्यों नही भेजा गया? यदि वह अभी तक वहीं हो तो अमृतसर से निरंजन के पत्र मिलते ही उसे पंजाब भेज देना। मैं पंजाब के पहाड़ों पर और भी कुछ विश्राम लेने के बाद पंजाब में कार्य प्रारम्भ करूँगा। पंजाब तथा राजपूताना वास्तविक कार्यक्षेत्र हैं। कार्य प्रारम्भ कर तुम लोगों को सूचित करूँगा।
बीच में मेरा स्वास्थ्य अत्यन्त खराब हो गया था। अब धीरे-धीरे सुधर रहा है। पहाड़ पर कुछ दिन रहने से ही ठीक हो जायगा। आलासिंगा, जी. जी., आर. ए. गुडविन, गुप्त (स्वामी सदानन्द), शुकुल आदि सभी को मेरा प्यार कहना तथा तुम स्वयं जानना। इति।
सस्नेह,
विवेकानन्द