स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (30 सितम्बर, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)
ॐ नमो भगवते रामकृष्णाय
श्रीनगर, काश्मीर,
३० सितम्बर, १८९७
प्रिय शशि,
अब काश्मीर देखकर लौट रहा हूँ। दो-एक दिन के अन्दर पंजाब रवाना हो रहा हूँ। आजकल शरीर बहुत स्वस्थ होने के कारण पहले जैसा पुनः भ्रमण करने का मेरा विचार है। व्याख्यान आदि विशेष नहीं देना है – यदि पंजाब में दो-एक भाषणों की व्यवस्था हुई तो होगी, वरना नहीं। अपने देश के लोगों ने तो अभी एक भी पैसा मेरे मार्गव्यय के लिए भी नहीं दिया – ऐसी हालत में तुम्हारे साथ मण्डली लेकर भ्रमण करना कितना कष्टसाध्य है, यह तुम खुद ही समझ सकते हो। केवल उन अंग्रेज शिष्यों के सम्मुख हाथ पसारना भी नितान्त लज्जा की बात है। अतः पहले जैसा ‘कम्बल’ मात्र के साथ ही रवाना हो रहा हूँ। यहाँ पर गुडविन आदि किसी की भी आवश्यकता नहीं है, यह तुम स्वयं ही समझ सकते हो।
पी. सी. जिनवर वमर नामक एक साधु ने लंका से मुझे एक पत्र लिखा है; वे भारत आना चाहते हैं। सम्भवतः ये ही वे श्यामदेश के राजकुमार साधु हैं। वल्लवाट्टा, लंका उनका पता है। यदि सुविधा हो तो उन्हें मद्रास में आमंत्रित करो। उनका वेदान्त में विश्वास है। मद्रास में उन्हें अन्यत्र भेजने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी। और उन जैसे व्यक्ति का सम्प्रदाय में रहना भी अच्छा है। सभी से मेरा प्यार तथा आशीर्वाद कहना एवं स्वयं भी जानना।
सस्नेह तुम्हारा,
विवेकानन्द
पुनश्च – खेतड़ी के राजा साहब १० अक्टूबर को बम्बई पहुँचेंगे; उन्हें अभिनन्दन-पत्र देने में भूल न होनी चाहिए।
वि.