स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी शुद्धानन्द को लिखित (15 सितम्बर, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी शुद्धानन्द को लिखा गया पत्र)
काश्मीर के प्रधान न्यायाधीश
श्री ऋषिवर मुखोपाध्याय का मकान, श्रीनगर
१५ सितम्बर, १८९७
प्रिय शुद्धानन्द,
आखिर में हम काश्मीर आ पहुँचे हैं। यहाँ की सारी सुन्दरता की बातें तुम्हें लिखने से लाभ ही क्या होगा? मैं समझता हूँ कि यही एकमात्र देश है, जो कि योगियों के लिए अनुकूल है। किन्तु इस देश के जो वर्तमान अधिवासी हैं, उनका शारीरिक सौन्दर्य तो अपूर्व है, किन्तु वे हैं नितान्त गन्दे! इस देश के द्रष्टव्य स्थलों को देखने तथा शक्ति प्राप्त करने के लिए एक माह तक नदियों की सैर करने का मेरा विचार है। किन्तु इस समय शहर में भयानक ‘मलेरिया’ का प्रकोप है, सदानन्द तथा कृष्णलाल को बुखार आ गया है। सदानन्द आज कुछ अच्छा है, किन्तु कृष्णलाल को अभी बुखार है। आज डॉक्टर ने उसे जुलाब लेने के लिए कहा है। आशा है कि वह कल तक स्वस्थ हो जायगा एवं हम यात्रा भी कल प्रारम्भ करेंगे। काश्मीर सरकार ने अपनी एक बड़ी नाव मुझे इस्तेमाल करने को दी है, वह अत्यन्त सुन्दर तथा सुखप्रद है। उन्होंने जिले के तहसीलदारों के प्रति भी आदेश जारी किया है। हमें देखने के लिए दल बाँधकर यहाँ के लोग आ रहे हैं तथा हमारी सुख-सुविधा के लिए जो कुछ आवश्यक है, उसकी सारी व्यवस्था की गयी है।
अमेरिका के किसी समाचार-पत्र में प्रकाशित डॉक्टर बरोज का एक लेख ‘इन्डियन मिरर’ में उद्धृत किया गया है। किसी एक व्यक्ति ने अपना नामोल्लेख न कर ‘इण्डियन मिरर’ का उक्त अंश मुझे भेज दिया है एवं उसका क्या उत्तर होगा – यह जानना चाहा है। मैं उक्त अंश को ब्रह्मानन्द के पास भेज रहा हूँ तथा जो अंश एकदम मिथ्या हैं,उनका जवाब भी लिखे दे रहा हूँ।
तुम वहाँ सकुशल हो तथा अपने दैनिक कार्य का संचालन कर रहे हो, यह जानकर मुझे खुशी हुई। मुझे शिवानन्द का भी एक पत्र मिला है; उसमें वहाँ के कार्यों का विस्तृत विवरण है।
एक माह के बाद मैं पंजाब जा रहा हूँ; आशा है कि तुम तीनों मुझसे अम्बाला में मिलोगे। यदि कोई केन्द्र स्थापित हो सके तो तुम लोगों में से किसी को उसका कार्यभार सौंप दूँगा। निरंजन, कृष्णलाल तथा लाटू को वापस भेज दूँगा।
एक बार शीघ्रतया पंजाब तथा सिन्ध होते हुए काठियावाड़ एवं बड़ौदा होकर राजपूताना लौटने की मेरी इच्छा है। वहाँ से नेपाल जाने का विचार है, उसके बाद कलकत्ता।
मुझे श्रीनगर में ऋषिबाबू के मकान के पते पर पत्र देना। लौटते समय मुझे पत्र मिल जाएँगे। सबको मेरा प्यार तथा आशीर्वाद कहना।
तुम्हारा,
विवेकानन्द