कविता

तुमने मुझको याद किया है

“तुमने मुझको याद किया है” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें कवि मन के खिंचाव और उससे पैदा उहापोह का वर्णन कर रहा है। पढ़ें और आनंद लें इस कविता का–

जब-जब नींद नहीं आती है
तब-तब मैं सोचा करता हूँ-
तुमने मुझको याद किया है।

वैसे तो जीवन चलता ही रहता है कुछ अस्त-व्यस्त-सा
मौन पड़ा रहता हूँ या फिर पढ़ता हूँ मैं भूत ध्वस्त-सा।

कुछ हलकी रेखाएँ उभर-उभर आती स्मृति में
जीवन के दिन कटते जाते कुछ स्मृति में कुछ विस्मृति में।

लेकिन अपना पिछला जीवन कभी नहीं लौटा पाता हूँ
दिवस चला जाता है यों ही सारी रात चली जाती है।

मन के सागर की गहराई अब तक नाप नहीं पाया हूँ
जितना ही भीतर जाता हूँ उतना ही ऊपर आया हूँ।

जानें कब से नाप रहा हूँ पर दूरी बढ़ती जाती है
गहराई बढ़ती जाती है उमर इधर घटती जाती है।

बहुत दूर तुम फिर भी जानें क्यों मैं निकट तुम्हें पाता हूँ
कोई छाया सपनों में आकर मुझको समझा जाती है।

नभ में चमक-चमक कर तारे निशि भर पथ दिखलाने आये
शायद साँवरिया को अपनी यहीं कहीं राधा मिल जाये।

पर यह तो मन का भ्रम था या उर की वासना मनोहर
निर्धन की अभिलाषा सुन्दर महाकृपण की स्वर्ण धरोहर।

कोई नहीं कहीं पर फिर भी युगल भुजाएँ फैलाता हूँ
अन्धकार में जानें कैसे, सारी सृष्टि सिमट आती है।

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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