धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 13 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 13

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राजा का वसिष्ठजी से यज्ञ की तैयारी के लिये अनुरोध, वसिष्ठजी द्वारा इसके लिये सेवकों की नियुक्ति और सुमन्त्र को राजाओं को बुलाने के लिये आदेश, समागत राजाओं का सत्कार तथा पत्नियों सहित राजा दशरथ का यज्ञ की दीक्षा लेना

वर्तमान वसन्त ऋतु के बीतने पर जब पुन: दूसरा वसन्त आया, तबतक एक वर्ष का समय पूरा हो गया। उस समय शक्तिशाली राजा दशरथ संतान के लिये अश्वमेध यज्ञ की दीक्षा लेने के निमित्त वसिष्ठ जी के समीप गये॥

वसिष्ठजी को प्रणाम करके राजाने न्यायत: उनका पूजन किया और पुत्र-प्राप्ति का उद्देश्य लेकर उन द्विजश्रेष्ठ मुनि से यह विनययुक्त बात कही॥ २ ॥

‘ब्रह्मन्! मुनिप्रवर! आप शास्त्रविधि के अनुसार मेरा यज्ञ करावें और यज्ञके अंगभूत अश्व-संचारण आदि में ब्रह्मराक्षस आदि जिस तरह विघ्न न डाल सकें, वैसा उपाय कीजिये॥ ३ ॥

‘आपका मुझपर विशेष स्नेह है, आप मेरे सुहृद्—अकारण हितैषी, गुरु और परम महान् हैं। यह जो यज्ञका भार उपस्थित हुआ है, इसको आप ही वहन कर सकते हैं’॥ ४ ॥

तब ‘बहुत अच्छा’ कहकर विप्रवर वसिष्ठ मुनि राजासे इस प्रकार बोले—‘नरेश्वर! तुमने जिसके लिये प्रार्थना की है, वह सब मैं करूँगा’॥ ५ ॥

तदनन्तर वसिष्ठजीने यज्ञसम्बन्धी कर्मोंमें निपुण तथा यज्ञविषयक शिल्पकर्ममें कुशल, परम धर्मात्मा, बूढ़े ब्राह्मणों, यज्ञकर्म समाप्त होनेतक उसमें सेवा करनेवाले सेवकों, शिल्पकारों, बढ़इयों, भूमि खोदनेवालों, ज्योतिषियों, कारीगरों, नटों, नर्तकों, विशुद्ध शास्त्रवेत्ताओं तथा बहुश्रुत पुरुषोंको बुलाकर उनसे कहा—‘तुमलोग महाराजकी आज्ञासे यज्ञकर्मके लिये आवश्यक प्रबन्ध करो॥६ -८ ॥

‘शीघ्र ही कोई  हजार  लायी जायँ। राजाओंके ठहरनेके लिये उनके योग्य अन्न-पान आदि अनेक उपकरणोंसे युक्त बहुत-से महल बनाये जायँ॥ ९ ॥

‘ब्राह्मणों के रहनेके लिये भी सैकड़ों सुन्दर घर बनाये जाने चाहिये। वे सभी गृह बहुत-से भोजनीय अन्न-पान आदि उपकरणों से युक्त तथा आँधी-पानी आदिके निवारण में समर्थ हों॥ १० ॥

‘इसी तरह पुरवासियों के लिये भी विस्तृत मकान बनने चाहिये। दूरसे आये हुए भूपालोंके लिये पृथक्-पृथक् महल बनाये जायँ॥ ११ ॥

‘घोड़े और हाथियोंके लिये भी शालाएँ बनायी जायँ। साधारण लोगोंके सोनेके लिये भी घरोंकी व्यवस्था हो। विदेशी सैनिकों के लिये भी बड़ी-बड़ी छावनियाँ बननी चाहिये॥ १२ ॥

‘जो घर बनाये जायँ, उनमें खाने-पीनेकी प्रचुर सामग्री संचित रहे। उनमें सभी मनोवांछित पदार्थ सुलभ हों तथा नगर वासियों को भी बहुत सुन्दर अन्न भोजनके लिये देना चाहिये। वह भी विधिवत् सत्कारपूर्वक दिया जाय, अवहेलना करके नहीं॥ १३ १/२ ॥

‘ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये, जिससे सभी वर्ण के लोग भलीभाँति सत्कृत हो सम्मान प्राप्त करें। काम और क्रोध के वशीभूत होकर भी किसी का अनादर नहीं करना चाहिये॥ १४ ॥

‘जो शिल्पी मनुष्य यज्ञकर्म की आवश्यक तैयारीमें लगे हों, उनका तो बड़े-छोटे का खयाल रखकर विशेषरूप से समादर करना चाहिये॥ १५ १/२ ॥

‘जो सेवक या कारीगर धन और भोजन आदिके द्वारा सम्मानित किये जाते हैं, वे सब परिश्रमपूर्वक कार्य करते हैं। उनका किया हुआ सारा कार्य सुन्दर ढंगसे सम्पन्न होता है। उनका कोई काम बिगड़ने नहीं पाता; अत: तुम सब लोग प्रसन्नचित्त होकर ऐसा ही करो’॥

तब वे सब लोग वसिष्ठजीसे मिलकर बोले—‘आपको जैसा अभीष्ट है, उसके अनुसार ही करने के लिये अच्छी व्यवस्था की जायगी। कोई भी काम बिगड़ने नहीं पायेगा। आपने जैसा कहा है, हम लोग वैसा ही करेंगे। उसमें कोई त्रुटि नहीं आने देंगे’॥ १८ १/२ ॥

तदनन्तर वसिष्ठजीने सुमन्त्रको बुलाकर कहा— ‘इस पृथ्वीपर जो-जो धार्मिक राजा, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और सहस्रों शूद्र हैं, उन सबको इस यज्ञमें आनेके लिये निमन्त्रित करो॥ २० ॥

‘सब देशों के अच्छे लोगों को सत्कारपूर्वक यहाँ ले आओ। मिथिलाके स्वामी शूरवीर महाभाग जनक सत्यवादी नरेश हैं। उनको अपना पुराना सम्बन्धी जानकर तुम स्वयं ही जाकर उन्हें बड़े आदर-सत्कारके साथ यहाँ ले आओ; इसीलिये पहले तुम्हें यह बात बता देता हूँ॥ २१-२२ ॥

‘इसी प्रकार काशीके राजा अपने स्नेही मित्र हैं और सदा प्रिय वचन बोलनेवाले हैं। वे सदाचारी तथा देवताओंके तुल्य तेजस्वी हैं; अत: उन्हें भी स्वयं ही जाकर ले आओ॥ २३ ॥

‘केकयदेशके बूढ़े राजा बड़े धर्मात्मा हैं, वे राजसिंह महाराज दशरथके श्वशुर हैं; अत: उन्हें भी पुत्रसहित यहाँ ले आओ॥ २४ ॥

‘अंगदेशके स्वामी महाधनुर्धर राजा रोमपाद हमारे महाराजके मित्र हैं, अत: उन्हें पुत्रसहित यहाँ सत्कारपूर्वक ले आओ॥ २५ ॥

‘कोशलराज भानुमान्को भी सत्कार पूर्वक ले आओ। मगधदेशके राजा प्राप्तिज्ञको, जो शूरवीर, सर्वशास्त्रविशारद, परम उदार तथा पुरुषोंमें श्रेष्ठ हैं, स्वयं जाकर सत्कार पूर्वक बुला ले आओ॥ २६ १/२ ॥

‘महाराजकी आज्ञा लेकर तुम पूर्वदेशके श्रेष्ठ नरेशोंको तथा सिन्धु-सौवीर एवं सुराष्ट्र देशके भूपालोंको यहाँ आनेके लिये निमन्त्रण दो॥ २७ ॥

‘दक्षिण भारतके समस्त नरेशोंको भी आमन्त्रित करो। इस भूतलपर और भी जो-जो नरेश महाराजके प्रति स्नेह रखते हैं, उन सबको सेवकों और सगे-सम्बन्धियों-सहित यथासम्भव शीघ्र बुला लो। महाराजकी आज्ञासे बड़भागी दूतोंद्वारा इन सबके पास बुलावा भेज दो’॥ २८-२९ ॥

वसिष्ठ का यह वचन सुनकर सुमन्त्रने तुरंत ही अच्छे पुरुषोंको राजाओंकी बुलाहटके लिये जाने का आदेश दे दिया॥ ३० ॥

परम बुद्धिमान् धर्मात्मा सुमन्त्र वसिष्ठ मुनिकी आज्ञासे खास-खास राजाओंको बुलाने के लिये स्वयं ही गये॥ ३१ ॥

यज्ञकर्म की व्यवस्था के लिये जो सेवक नियुक्त किये गये थे, उन सबने आकर उस समय तक यज्ञ सम्बन्धी जो-जो कार्य सम्पन्न हो गया था, उस सबकी सूचना महर्षि वसिष्ठ को दी॥ ३२ ॥

यह सुनकर वे द्विजश्रेष्ठ मुनि बड़े प्रसन्न हुए और उन सबसे बोले—‘भद्र पुरुषो! किसी को जो कुछ देना हो; उसे अवहेलना या अनादरपूर्वक नहीं देना चाहिये; क्योंकि अनादरपूर्वक दिया हुआ दान दाताको नष्ट कर देता है—इसमें संशय नहीं है’॥ ३३ १/२ ॥

तदनन्तर कुछ दिनोंके बाद राजा लोग महाराज दशरथके लिये बहुत-से रन्तोंकी भेंट लेकर अयोध्यामें आये॥ ३४ १/२ ॥

इससे वसिष्ठजीको बड़ी प्रसन्नता हुर्इ। उन्होंने राजासे कहा—‘पुरुषसिंह! तुम्हारी आज्ञासे राजा लोग यहाँ आ गये। नृपश्रेष्ठ! मैंने भी यथा योग्य उन सबका सत्कार किया है॥ ३५-३६ ॥

‘हमारे कार्यकर्ताओंने पूर्णत: सावधान रहकर यज्ञके लिये सारी तैयारी की है। अब तुम भी यज्ञ करनेके लिये यज्ञमण्डपके समीप चलो॥ ३७ ॥

‘राजेन्द्र! यज्ञमण्डपमें सब ओर सभी वाञ्छनीय वस्तुएँ एकत्र कर दी गयी हैं। आप स्वयं चलकर देखें। यह मण्डप इतना शीघ्र तैयार किया गया है, मानो मनके संकल्पसे ही बन गया हो’॥ ३८ ॥

मुनिवर वसिष्ठ तथा ऋष्यश्रृंग दोनों के आदेश से शुभ नक्षत्रवाले दिन को राजा दशरथ यज्ञके लिये राजभवनसे निकले॥ ३९ ॥

तत्पश्चात् वसिष्ठ आदि सभी श्रेष्ठ द्विजोंने यज्ञमण्डपमें जाकर ऋष्यश्रृंगको आगे करके शास्त्रोक्त विधिके अनुसार यज्ञकर्मका आरम्भ किया। पत्नियोंसहित श्रीमान् अवधनरेशने यज्ञकी दीक्षा ली॥ ४०-४१ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें तेरहवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १३॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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