धर्म

वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 21 हिंदी में – Valmiki Ramayana Balakanda Chapter – 21

विश्वामित्र के रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठ का राजा दशरथ को समझाना

राजा दशरथ की बात के एक-एक अक्षर में पुत्र के प्रति स्नेह भरा हुआ था, उसे सुनकर महर्षि विश्वामित्र कुपित हो उनसे इस प्रकार बोले—॥ १ ॥

‘राजन्! पहले मेरी माँगी हुई वस्तु के देने की प्रतिज्ञा करके अब तुम उसे तोड़ना चाहते हो। प्रतिज्ञाका यह त्याग रघुवंशियों के योग्य तो नहीं है। यह बर्ताव तो इस कुलके विनाश का सूचक है॥ २ ॥

‘नरेश्वर! यदि तुम्हें ऐसा ही उचित प्रतीत होता है तो मैं जैसे आया था, वैसे ही लौट जाऊँगा। ककुत्स्थकुल के रन्त! अब तुम अपनी प्रतिज्ञा झूठी करके हितैषी सुहृदोंसे घिरे रहकर सुखी रहो’॥ ३ ॥

बुद्धिमान् विश्वामित्र के कुपित होते ही सारी पृथ्वी काँप उठी और देवताओं के मन में महान् भय समा गया॥ ४ ॥

उनके रोष से सारे संसार को त्रस्त हुआ जान उत्तम व्रतका पालन करने वाले धीरचित्त महर्षि वसिष्ठने राजा से इस प्रकार कहा—॥ ५ ॥

‘महाराज! आप इक्ष्वाकुवंशी राजाओंके कुलमें साक्षात् दूसरे धर्म के समान उत्पन्न हुए हैं। धैर्यवान्, उत्तम व्रत के पालक तथा श्रीसम्पन्न हैं। आपको अपने धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिये॥ ६ ॥

‘‘रघुकुल भूषण दशरथ बड़े धर्मात्मा हैं’ यह बात तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। अत: आप अपने धर्म का ही पालन कीजिये; अधर्मका भार सिरपर न उठाइये॥ ७ ॥

‘मैं अमुक कार्य करूँगा’—ऐसी प्रतिज्ञा करके भी जो उस वचनका पालन नहीं करता, उसके यज्ञ-यागादि इष्ट तथा बावली-तालाब बनवाने आदि पूर्त कर्मों के पुण्यका नाश हो जाता है, अत: आप श्रीराम को विश्वामित्र जी के साथ भेज दीजिये॥ ८ ॥

‘ये अस्त्रविद्या जानते हों या न जानते हों, राक्षस इनका सामना नहीं कर सकते। जैसे प्रज्वलित अग्निद्वारा सुरक्षित अमृतपर कोई हाथ नहीं लगा सकता, उसी प्रकार कुशिकनन्दन विश्वामित्र से सुरक्षित हुए श्रीराम का वे राक्षस कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते॥ ९ ॥

‘ये श्रीराम तथा महर्षि विश्वामित्र साक्षात् धर्म की मूर्ति हैं। ये बलवानों में श्रेष्ठ हैं। विद्याके द्वारा ही ये संसार में सबसे बढ़े-चढ़े हैं। तपस्या के तो ये विशाल भण्डार ही हैं॥ १० ॥

‘चराचर प्राणियों सहित तीनों लोकोंमें जो नाना प्रकारके अस्त्र हैं, उन सबको ये जानते हैं। इन्हें मेरे सिवा दूसरा कोई पुरुष न तो अच्छी तरह जानता है और न कोई जानेंगे ही॥ ११ ॥

‘देवता, ऋषि, राक्षस, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर तथा बड़े-बड़े नाग भी इनके प्रभाव को नहीं जानते हैं॥ १२ ॥

‘प्राय: सभी अस्त्र प्रजापति कृशाश्वके परम धर्मात्मा पुत्र हैं। उन्हें प्रजापति ने पूर्वकाल में कुशिकनन्दन विश्वामित्र को जब कि वे राज्य शासन करते थे, समर्पित कर दिया था॥ १३ ॥

‘कृशाश्व के वे पुत्र प्रजापति दक्ष की दो पुत्रियों की संतानें हैं। उनके अनेक रूप हैं। वे सब-के-सब महान् शक्तिशाली, प्रकाशमान और विजय दिलाने वाले हैं॥ १४ ॥

‘प्रजापति दक्ष की दो सुन्दरी कन्याएँ हैं, उनके नाम हैं जया और सुप्रभा। उन दोनों ने एक सौ परम प्रकाशमान अस्त्र-शस्त्रों को उत्पन्न किया है॥ १५ ॥

‘उनमेंसे जयाने वर पाकर पचास श्रेष्ठ पुत्रों को प्राप्त किया है, जो अपरिमित शक्तिशाली और रूप रहित हैं। वे सब-के-सब असुरों की सेनाओंका वध करने के लिये प्रकट हुए हैं॥ १६ ॥

‘फिर सुप्रभाने भी संहार नामक पचास पुत्रोंको जन्म दिया, जो अत्यन्त दुर्जय हैं। उनपर आक्रमण करना किसी के लिये भी सर्वथा कठिन है तथा वे सब-के-सब अत्यन्त बलिष्ठ हैं॥ १७ ॥

‘ये धर्मज्ञ कुशिकनन्दन उन सब अस्त्र-शस्त्रों को अच्छी तरह जानते हैं। जो अस्त्र अबतक उपलब्ध नहीं हुए हैं, उनको भी उत्पन्न करनेकी इनमें पूर्ण शक्ति है॥ १८ ॥

‘रघुनन्दन! इसलिये इन मुनिश्रेष्ठ धर्मज्ञ महात्मा विश्वामित्र जी से भूत या भविष्यकी कोई बात छिपी नहीं है॥ १९ ॥

‘राजन्! ये महातेजस्वी, महायशस्वी विश्वामित्र ऐसे प्रभावशाली हैं। अत: इनके साथ राम को भेजने में आप किसी प्रकारका संदेह न करें॥ २० ॥

‘महर्षि कौशिक स्वयं भी उन राक्षसोंका संहार करनेमें समर्थ हैं; किंतु ये आपके पुत्रका कल्याण करना चाहते हैं, इसीलिये यहाँ आकर आपसे याचना कर रहे हैं’॥ २१ ॥

महर्षि वसिष्ठके इस वचन से विख्यात यशवाले रघुकुलशिरोमणि नृपश्रेष्ठ दशरथका मन प्रसन्न हो गया। वे आनन्दमग्न हो गये और बुद्धि से विचार करने पर विश्वामित्रजी की प्रसन्नता के लिये उनके साथ श्रीराम का जाना उन्हें रुचि के अनुकूल प्रतीत होने लगा॥ २२ ॥

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें इक्कीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ २१॥

सुरभि भदौरिया

सात वर्ष की छोटी आयु से ही साहित्य में रुचि रखने वालीं सुरभि भदौरिया एक डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी चलाती हैं। अपने स्वर्गवासी दादा से प्राप्त साहित्यिक संस्कारों को पल्लवित करते हुए उन्होंने हिंदीपथ.कॉम की नींव डाली है, जिसका उद्देश्य हिन्दी की उत्तम सामग्री को जन-जन तक पहुँचाना है। सुरभि की दिलचस्पी का व्यापक दायरा काव्य, कहानी, नाटक, इतिहास, धर्म और उपन्यास आदि को समाहित किए हुए है। वे हिंदीपथ को निरन्तर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचाने में सतत लगी हुई हैं।

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